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बिहार: महिला दिवस के दिन दो नाबालिग़ों का उत्पीड़न, ये कैसा 'सुशासन'?

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 के दौरान महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले में बिहार में 16.8% की वृद्धि हुई, इसके तहत कुल 17,950 रिपोर्ट हुए।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को जब पूरी दुनिया महिलाओं के संघर्षों को याद कर उनके लिए एक बेहतर कल की उम्मीद कर रही थी, तभी बिहार के बेगूसराय से दो नाबालिग लड़कियों के उत्पीड़न की घटना सामने आई। ये घटना महज़ खबर नहीं थी, ये उस पितृसत्तात्मक सोच का हमला था, जिससे सदियों से महिलाएं जूझती, भिड़ती और लड़ती चली आ रही हैंं।

बता दें कि बीते साल 2022 में भी होली के उल्लास के बीच बिहार के बांका जिले में एक 8 साल की बच्ची के साथ कथित रेप और हत्या का मामला सामने आया था। तब पुलिस ने बताया था कि बच्ची जब 19 मार्च को अपने छोटे भाई और दोस्तों के साथ घर के बाहर होली खेल रही थी, तभी कोई उसे उठाकर ले गया था। मासूम के साथ रेप, आंखें फोड़ने और हत्या कर उसके शव को एक नाले में बालू से दबा देने की खबरों ने सबको झंकझोर दिया था। अब एक बार फिर होली के दिन शर्मसार करने वाली खबर सामने है।

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बेगूसराय के साहेबपुर कमाल थाना क्षेत्र का ये मामला बुधवार, 8 मार्च की शाम का है, जब होली के नशे में धुत गांव के पूर्व सरपंच के बेटे ने स्कूल कैंपस में झूला झूलने गई दो बच्चियों के साथ कथित तौर पर इस घिनौनी वारदात को अंजाम दिया। पुलिस के मुताबिक इस घटना में एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया है वहीं दूसरी नाबालिग बच्ची घायल है। दोनों का इलाज बेगूसराय सदर अस्पताल में चल रहा है और आरोपी को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।

हर उम्र की महिलाएं हो रही हैं यौन हिंसा की शिकार

इस पूरी घटना में जिन दो बच्चियों को उत्पीड़न का शिकार बनाया गया है, उसमें एक की उम्र सात तो वहीं दूसरी नौ साल की है। वहीं जहां ये वारदात हुई वो एक स्कूल कैंपस था। ये सारे तथ्य ये बताने के लिए काफी हैं कि हमारे देश में महज़ कपड़ों और लेट नाइट पार्टियों को देखकर ही यौन शोषण नहीं होता, बल्कि ये नवजात शिशु से लेकर बुजुर्ग महिला तक बिना किसी कारण अंजाम दिया जाता है। बस हर बार संघर्ष एक महिला और उसके परिवार को ही करना पड़ता है।

बिहार हमारे देश का वो राज्य है, जहां उत्तर प्रदेश के बाद देशभर में सबसे ज्यादा हत्या के मामले दर्ज किए गए हैं। बिहार में साल 2021 में 2799 हत्या के मामले सामने आए हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में बिहार में 16.8% की वृद्धि हुई है, इसके तहत कुल 17,950 रिपोर्ट हुए। साल 2021 में बिहार में रेप से जुड़े 786 मामले दर्ज हुए थे तो वहीं इसमें पॉक्सो से संबंधित1,561 केस रजिस्टर्ड हुए। बिहार में दहेज की वजह से 1000 महिलाओं की हत्या कर दी गई। बिहार में सुशासन और विकास के तमाम दावों और योजनाओं के बावजूद आए दिन महिला हिंसा से जुड़ी कोई न कोई खबर सुर्खियों में रहती ही है।

राजनीति के बदलते समीकरणों के बीच बढ़ते अपराध

इस राज्य के राजनीतिक समीकरण जितने तेज़ी से बदलते हैं, उतनी ही तेज़ी से यहां अपराध बढ़ते हैं। 'सुशासन बाबू' के नाम से मशहूर नीतीश कुमार भले ही राजनीति में कभी इस पार्टी तो कभी उस पार्टी का सहारा लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा रहे हों, लेकिन प्रदेश में कानून व्यवस्था उनके हाथों से फिसल चुकी है। आपको याद होगा बीते साल जब इंडिगो के स्टेशन मैनेजर रूपेश कुमार सिंह की हत्या के बाबत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पत्रकारों ने सवाल किया था, तो सीएम साहब ने तल्ख लहजे में जवाब दिया था, “कृपया विकास और अपराध के मामलों को मत मिलाइए।" वहीं जब उनसे सवाल महिलाओं की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था को लेकर प्रश्न पूछा गया था, तब इसे नीतीश बाबू ‘पुलिस को हतोत्साहित करने वाला’ बताकर अपनी जवाबदेही से भाग निकले थे।

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समाजिक कार्यकर्ता और बिहार में महिला अधिकारों से जुड़े एक संगठन में काम करने वाली मीनाक्षी तिवारी बताती हैं कि बिहार में महिलाओं- बच्चियों के साथ शोषण-उत्पीड़न रेप जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। कोई खबर सुर्खियों में तभी बड़ी बनती है, जब पीड़िता की मौत हो जाए। ज्यादातर मामले अभी भी दबा दिए जाते हैं।

मीनाक्षी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “पितृसत्ता बिहार के अधिकतर लोगों और नेताओं के दिमाग में है। यहां भले ही सरकार के सहयोगी बदल जाएं, हालात एक ही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि अपराधियों को सत्ता का संरक्षण हासिल है और नीतीश बाबू सुशासन के कसीदे पढ़ रहे हैं। बिहार में एक के बाद एक हो रही हत्याओं और बलात्कार की घटनाओं ने कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा को लेकर तमाम सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं। लेकिन जवाब किसी नेता या पार्टी के पास नहीं है।"

गौरतलब है कि साल 2005 से नीतीश सरकार के चौथी दफा सत्तासीन होने के बाद भी राज्य में महिलाओं के साथ बढ़ती बर्बर हिंसा पर लगाम नहीं लग रही है। सरकार महिला सुरक्षा के तमाम दावे जरूर करती रही है लेकिन उसे जमीन पर नहीं उतार सकी है। फिलहाल जरूरत है महिलाओं के मुद्दों को गंभीरता से समझ कर उस कार्रवाई को अंजाम देने का जिससे वे सुरक्षित महसूस कर सकें क्योंकि इसके बिना सुशासन कभी संभव ही नहीं है।

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