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CITU, AIKS, AIAWU का जन-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ राष्ट्रव्यापी आंदोलन के लिए संयुक्त अभियान शुरू

सीआईटीयू के महासचिव तपन सेन ने कहा कि ये संयुक्त आंदोलन शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के 'सभी लोगों के लिए नौकरी' स्कीम की मांग करता है।
CITU, AIKS, AIAWU का जन-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ राष्ट्रव्यापी आंदोलन के लिए संयुक्त अभियान शुरू

COVID-19 महामारी के दौरान केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई कॉरपोरेट-समर्थक और किसान-विरोधी, श्रमिक-विरोधी नीतियों के विरोध में ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस), सेंटर ऑफ ऑल इंडिया ट्रेड यूनियंस (सीआईटीयूऑल इंडिया एग्रिकल्चरल वर्कर्स यूनियन (एआईएडब्ल्यूयूने संयुक्त रूप से 23 जुलाई और अगस्त (भारत छोड़ो दिवसके मौके पर बड़े आंदोलन के लिए देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया है।

शुक्रवार 12 जून को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए एआईकेएस के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि 10 जून को देश भर के लाखों किसानों ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा हाल ही में घोषित कृषि संबंधी तीन अध्यादेशों की प्रतियां जला दीं। मोल्लाह ने कहा ये अध्यादेश किसानों के उत्पादन का व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधाअध्यादेश, 2020, क़ीमत का आश्वासन और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020 पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षणसमझौता और आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन “के परिणामस्वरूप किसानों पर आधारित कृषि का अंत होगा और देश में कॉरपोरेट नियंत्रित कृषि पनपेगा।”

लॉकडाउन के दौरान किसानों को फसल कटाईफसल उपज को ले जाने के लिए परिवहनफसल के नुकसान और न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित कई समस्याओं का ज़िक्र करते हुए मोल्लाह ने ज़ोर देकर कहा कि सरकार की नई कृषि संबंधी नीतियों से किसानों की रीढ़ टूट जाएगी।

सीआईटीयूएआईकेएस और एआईएडब्ल्यूयू यूनियनों ने कहा कि उनके सदस्य 23 जुलाई को सभी राज्यों में संयुक्त रूप से ग्रामीण स्तर और सब डिविजनल स्तर पर विरोध सभाओं के लिए प्रचार करेंगे। इन यूनियनों ने अगस्त या भारत छोड़ो दिवस के मौके पर एक बड़े आंदोलन में अपने आंदोलन को विकसित करने के लिए मिलकर काम करने का संकल्प लिया है।

सीआईटीयू के महासचिव तपन सेन ने कहा, “श्रमिककिसान और कृषि श्रमिक देश में धन के वास्तविक उत्पादक हैं। चूंकि इन वर्गों के लोगों को सरकार के साथ बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं बची है ऐसे में यूनियन कॉरपोरेट-समर्थक नीतियों का विरोधप्रतिरोधलोगों को एकजुट करने और मुकाबला करने का काम करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार का आत्म निर्भर भारत पैकेज कॉरपोरेट के लिए है जो भविष्य में अर्थव्यवस्था को केवल तबाह करेगा।

सेन ने कहा कि संयुक्त आंदोलन शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के 'सभी लोगों के लिएनौकरियों की मांग करता है।

एआईएडब्ल्यूयू के महासचिव बीवेंकट ने कहा कि कृषि श्रमिकों के बीच वर्तमान संकट कार्यभोजनप्रवास और जातिगत भेदभाव से संबंधित है। वेंकट ने कहालॉकडाउन के दौरान श्रमिकों क शहर से ग्रामीण क्षेत्र की तरफ पलायन करने से अब लगभग पांच करोड़ अधिक श्रमिक कृषि क्षेत्र में काम तलाश रहे हैं जिससे कृषि श्रमिकों की कुल संख्या बढ़कर 19 करोड़ हो गई है। नमें से लगभग 90% अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं। ग्रामीण भारत में प्रवासी श्रमिकों के जातिगत भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार के उदाहरण हैं जो जमींदारों द्वारा कमज़ोर समुदायों के शोषण का संकेत देते हैं” कृषि श्रमिकों की बढ़ती संख्या को काम देने के लिए उन्होंने मांग की है कि सरकार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगायोजना के लिए अतिरिक्त लाख करोड़ रुपये की मंज़ूरी देनी चाहिए।

यूनियनें यह भी मांग कर रही हैं कि सरकार को सभी लोगों के लिए निशुल्क COVID-19 जांच और इलाज उपलब्ध कराना चाहिए।

कृषि संकट को लेकर चर्चा करते हुए मोल्लाह ने कहा कि ऋणों के अधिक बोझ और फसल के नुकसान के कारण लॉकडाउन की अवधि में 250 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है।

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