क्या वाकई कांग्रेस बदलाव को लेकर गंभीर नहीं है?
बिहार चुनाव और गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कमज़ोर प्रदर्शन को लेकर पार्टी के भीतर टकराव दिखाई दे रहा है। कई वरिष्ठ नेताओं ने एक बार फिर से आत्मचिंतन किए जाने की वकालत की है। हालांकि इसके विपरीत केंद्रीय नेतृत्व के पसंदीदा नेताओं ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है उससे यही लगता है कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी में कोई बदलाव होने नहीं जा रहा है।
अभी के हालात में यही लग रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व 2014 के बाद से ही एक के बाद एक चुनावों में पराजय के कारणों पर आत्ममंथन करने से न केवल बच रहा है, बल्कि जो नेता इसकी जरूरत जताते हैं, उन्हें हतोत्साहित कर रहा है। देखने में ये भी आ रहा है कि पार्टी के भीतर ऐसा कोई भी मंच नहीं बचा है जहां पर नाराज नेता अपनी बात रख सकें। कई वरिष्ठ नेताओं को अपनी बात रखने के लिए मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है।
सबसे ताजा मामला कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के बयान का है। इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व पार्टी की समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी को उसके समक्ष आई समस्याएं पता हैं और वह उसका समाधान भी जानती है लेकिन वह इन समाधान को अपनाने से कतरा रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘हममें से कुछ लोगों ने आवाज उठाई है कि कांग्रेस को सही राह पर आगे ले जाने के लिए क्या किया जा सकता है। हमारी सुनने के बजाय उन्होंने (नेतृत्व) हमारी बात अनसुनी कर दी। इसके नतीजे हम सबके सामने हैं। सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि देश के लोग, जहां कहीं भी उपचुनाव हुए हैं, वहां लोगों ने कांग्रेस को एक प्रभावी विकल्प नहीं माना।’
सिब्बल ने कहा, ‘कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) का हिस्सा रहे मेरे एक सहयोगी ने कांग्रेस के भीतर आत्ममंथन की उम्मीद जताई थी। अगर छह सालों में कांग्रेस ने आत्ममंथन नहीं किया तो अब इसकी उम्मीद कैसे करें? हमें कांग्रेस की कमजोरियां पता हैं। हमें पता है कि सांगठनिक तौर पर क्या समस्या है? हमारे पास इसका समाधान भी है। कांग्रेस पार्टी भी इसका समाधान जानती है लेकिन वो इन समाधान को अपनाने से कतराते हैं। अगर वो ऐसा करते रहेंगे तो ग्राफ यूं ही गिरता रहेगा। कांग्रेस को बहादुर बनकर इन्हें पहचानना होगा।’
उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस गुजरात के उपचुनावों में सभी आठों सीटें हार गई। गुजरात में हमारे तीन प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में सात सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों को दो फीसदी से भी कम वोट मिले। यहां तक कि मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भी पार्टी का खराब प्रदर्शन रहा।’
गौरतलब है कि बिहार में राजद की अगुवाई वाले गठबंधन में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटों पर जीत मिली है।
बता दें कि कपिल सिब्बल कांग्रेस पार्टी के उन 23 नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में बदलाव लाने, जवाबदेही तय करने, नियुक्त प्रक्रिया को मजबूत बनाने और हार का उचित आकलन करने की मांग की थी।
उस पत्र के बारे में पूछने पर सिब्बल ने कहा, ‘उस पत्र को लिखे जाने के बाद से अब तक पार्टी नेतृत्व से कोई संवाद नही हुआ है और पार्टी नेतृत्व की ओर से संवाद के लिए कोई प्रयास भी होते नहीं दिख रहा है।’
सिब्बल का समर्थन करते हुए तमिलनाडु में शिवगंगा से लोकसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति ने एक ट्वीट में कहा, ‘कांग्रेस के लिए यह आत्मविश्लेषण, चिंतन और विचार-विमर्श और कदम उठाने का समय है।’
इससे पहले बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने भी ट्वीट किया था कि, 'हमें सच को स्वीकार करना चाहिए। कांग्रेस के कमज़ोर प्रदर्शन के कारण महागठबंधन की सरकार से बिहार महरूम रह गया। कांग्रेस को इस विषय पर आत्म चिंतन ज़रूर करना चाहिए कि उस से कहां चूक हुई? MIM की बिहार में एंट्री शुभ संकेत नहीं है।'
कांग्रेस नेता पीएल पूनिया ने भी बिहार में प्रदर्शन को लेकर समीक्षा और आत्ममंथन की बात कही है। उन्होंने कहा कि पार्टी नतीजों का रिव्यू करे ताकि आगे बेहतर प्रदर्शन हो।
इतना ही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार पर आरजेडी के नेता शिवानंद तिवारी ने भी कांग्रेस पर करारा हमला किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस बार के चुनाव में महागठबंधन के लिए घातक साबित हुई।
आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने कहा, "जब बिहार में चुनाव अपने चरम पर था, तब राहुल गांधी प्रियंका गांधी के साथ शिमला में पिकनिक मना रहे थे। क्या पार्टी ऐसे चलती है? कांग्रेस जिस तरह से चुनाव लड़ रही है, उससे बीजेपी को ही फायदा पहुंचा रही है।"
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उनकी तरफ से 70 रैलियां भी नहीं की। जो लोग बिहार को जानते नहीं थे, उनके हाथ में प्रचार की कमान थी। राहुल गांधी तीन दिन के लिए आए, जबकि प्रियंका गांधी तो आईं भी नहीं।
हालांकि बाद में आरजेडी ने शिवानंद तिवारी के बयान से पल्ला झाड़ लिया और उनके बयान को निजी राय बताया।
वहीं, दूसरी ओर खासकर कपिल सिब्बल के इंटरव्यू के बाद कांग्रेस पार्टी के दूसरे कई नेताओं ने ऐतराज जताया है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे लेकर कई ट्वीट किए। उन्होंने लिखा, 'कपिल सिब्बल जी को हमारे अंदरूनी मसलों की मीडिया में चर्चा करने की ज़रूरत नहीं थी, इससे देश भर में हमारे कार्यकर्ताओं की भावनाएँ आहत हुई हैं।'
वैसे यह पहली बार नहीं है कि कांग्रेस में बदलाव की वकालत करने वाले लोगों की आलोचना की गई है। कुछ महीने पहले ही कांग्रेस के करीब दो दर्जन वरिष्ठ नेताओं की ओर से पार्टी के तौर-तरीकों में बदलाव के लिए सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी गई थी। उस समय में भी उन नेताओं को इसी तरह का संदेश दिया गया था। इनमें से कुछ के तो पर भी कतर दिए गए थे। उस समय उठाए गए कदमों से यह जताने की कोशिश की गई थी कि कोई नेता परिवार को सुझाव-सलाह देने की भी हिम्मत न जुटाए।
देखने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस जैसे जैसे कमजोर हो रही है गांधी परिवार की पकड़ उस पर मजबूत होती जा रही है। इस समय गांधी परिवार के तीन सदस्य सोनिया, राहुल और प्रियंका पार्टी के तीन मजबूत पदों पर विराजमान है और पार्टी रसातल में है।
इसके अलावा कांग्रेस में ऐसे नेताओं का भी एक ऐसा समूह उभर आया है, जिसका एकमात्र काम शीर्ष नेतृत्व का गुणगान करना है। ऐसे में लगता है कि एक बार फिर कांग्रेस में सबकुछ सामान्य कर दिया जाय और सुधार की आवाजों को दबा दिया जाय।
अंत में अगर हम कांग्रेस की तुलना बीजेपी से करें तो यह पार्टी हमेशा चुनावी मोड और हार जीत की समीक्षा करती नजर आ रही है। बिहार में चुनाव की समाप्ति के तुरंत बाद ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता बंगाल विधानसभा चुनावों की तैयारी करते नजर आने लगे। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने दो दिवसीय बंगाल का दौरा भी किया है।
इतना ही नहीं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा साल 2024 में होने वाले आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जमीनी तैयारियों को सुदृढ़ करने के मकसद से 100 दिनों के देशव्यापी दौरे की योजना बना रहे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक अपने दौरे का अधिकांश समय नड्डा उन राज्यों में बिताएंगे जहां भाजपा सत्ता से बाहर है।
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ही केंद्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती देने की हालत में है। लेकिन अगर पार्टी में ऐसे ही टकराव जारी रहा तो यह वाकई में कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर डालेगा।
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