झारखंड : ‘60-40 नाय चलतौ’, ‘नई नियोजन नीति’ को लेकर तेज़ हुआ विरोध
झारखंड में ‘नई नियोजन नीति’ की घोषणा के साथ ही छात्र-युवाओं का विरोध शुरू हो गया। इस नीति में यह प्रावधान दिया गया कि अब से ‘60-40’ के आधार पर नियोजन कार्य किया जाएगा जिसके तहत प्रदेश के सभी स्तरों की सरकारी नौकरियों में यहां के मूल निवासियों के लिए 60% सीटें आरक्षित होंगी और शेष 40% सीटें ‘ओपन फॉर ऑल’ के तहत अरक्षित रहेंगी।
हेमंत सोरेन सरकार द्वारा लाई गई राज्य की “नई नियोजन नीति” को लेकर उठा विरोध अब काफ़ी तीखा राजनैतिक रंग लेता जा रहा है। पूरे झारखंड प्रदेश के छात्र-युवा और उनके संगठन सरकार की “नई नियोजन नीति” के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं। इस नीति से नाराज़ छात्र और युवा, ‘60-40 नाय चलतौ’ के नारे के साथ सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।
मामले की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 18 अप्रैल को जब राज्य भर के छात्र-छात्राएं और युवा सैकड़ों की तादाद में राजधानी रांची स्थित मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने पहुंच गए तो प्रशासन ने अपनी हठधर्मिता दिखाते हुए ‘झारखंड के भावी भविष्यों’ पर अंधाधुंध लाठियां बरसा दीं जो कि ‘अबुवा राइज़’ के लिए बेहद आपत्तिजनक और अलोकतांत्रिक कृत्य कहा जा सकता है।
इस तरह की कार्रवाई ने हेमंत सोरेन सरकार का समर्थन करने वाले वाम दलों समेत सभी गैर भाजपा राजनैतिक दलों को काफ़ी व्यथित किया है।
सदन से लेकर सड़कों पर बेहद मुखर होकर झारखंड के छात्र-युवाओं और जनता के मुद्दों को उठाया जा रहा है। इस सिलसिले में भाकपा-माले के युवा विधायक विनोद सिंह ने भी एक बयान जारी किया जिसमें उन्होंने मांग की है कि सरकार अविलंब छात्र-युवाओं से संवाद करे और व्यापक जन आकांक्षाओं के अनुरूप राज्य की सही आरक्षण व नियोजन नीति घोषित करे।
इसके साथ ही बयान में कहा गया है कि, “18 अप्रैल 2023 को मुख्यमंत्री आवास का घेराव कर रहे आंदोलनकारी छात्रों पर किए गए पुलिस लाठी चार्ज को किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। मुख्यमंत्री को आंदोलनकारी छात्रों से बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए। हम सभी इस बात से भली भांति अवगत हैं कि भाजपा द्वारा खतियान आधारित स्थानीयता व आरक्षण नीति बनाने के मामले में किए गए विश्वासघात से झारखंडी छात्र-युवाओं को गहरा धक्का लगता रहा है। इसलिए बिहार में स्थानीयता आधारित नियोजन नीति को देखते हुए हेमंत सोरेन सरकार को भी झारखंड प्रदेश के अंदर ही इसका सही हल निकालने के लिए जल्द से जल्द सक्रियता दिखानी चाहिए। एक बार पुनः राज्य में सही नियोजन नीति बनाने की दिशा में बिना देर किए क़दम आगे बढ़ाने चाहिए जिससे भाजपा व अमित शाह के लिए “दोहरे खेल” की कोई गुंजाइश न हो।"
सरकार के ख़िलाफ़ छात्र-युवाओं के उभरे विरोध का राजनैतिक इस्तेमाल कर रही भाजपा पर आरोप है कि, "जब चंद महीने पहले ही झारखंड की विधान सभा में सर्वसम्मति से पारित 1932 के खतियान आधारित नियोजन व आरक्षण नीति को केंद्र सरकार के पास भेजकर अनुकूल कार्रवाई का आग्रह किया गया था। लेकिन दोहरी चाल चलते हुए भाजपा ने झारखंडियों के साथ धोखाधड़ी की। एक ओर, मामले को न्यायिक विवाद में फंसाकर उसे निरस्त करवा दिया। तो दूसरी ओर, केंद्र सरकार और गृहमंत्री के ज़रिए खुलेतौर पर दबाव डालकर राजभवन से उसे वापिस करवा दिया।"
इस सिलसिले में वाम दलों ने आंदोलनकारी छात्र-युवाओं को भी आगाह किया है कि वे भाजपा के दोहरे खेल को समझे। बिना इसे समझे वे अपने अधिकारों को नहीं हासिल कर पाएंगे।
उधर राज्य सरकार के भी एक वरिष्ठ मंत्री ने भी आंदोलनकारी छात्रों को आश्वस्त करने की कोशिश करते हुए कहा है कि "आप राज्य की सरकार पर भरोसा रखें और विरोधी दलों की “राजनीति” का शिकार ना हों। आप जानते ही हैं कि हमने पहले जो नीति बनाई थी उसे हाई कोर्ट द्वारा निरस्त करवा दिया गया है। इसलिए जल्द ही सरकार आपके हित में नियोजन नीति लागू करेगी।"
आपको बता दें प्रदेश के छात्र-युवाओं का विरोध उसी दिन से शुरू हो गया था जब हाल ही में प्रदेश की सरकार ने “नई नियोजन नीति” की घोषणा करते हुए यह प्रावधान दिया कि अब से “60-40” के आधार पर नियोजन कार्य किया जाएगा। जिसके तहत प्रदेश के सभी स्तरों की सरकारी नौकरियों में यहां के मूल निवासियों के लिए 60% सीटें आरक्षित होंगी और शेष 40% सीटें “ओपन फॉर ऑल” के तहत अरक्षित रहेंगी।
इसके बाद बड़े पैमाने पर राज्य के छात्र-युवा एक स्वर से इसे खारिज करते हुए कह रहें हैं कि, "झारखंड अलग राज्य का गठन हो जाने के बावजूद भी यहां की सरकारी नौकरियों में हमें उचित स्थान नहीं मिल रहा है। सभी महत्वपूर्ण नौकरियों में बाहरी बाज़ी मार ले जा रहें हैं और यहां के छात्र-युवा लागातार वंचित कर दिए जा रहें हैं। ‘60-40’ फार्मूला लागू होने से एकबार फिर बड़ी संख्या में इस प्रदेश की सरकारी नौकरियां 'बाहरी' ले जाएंगे। इसलिए राज्य सरकार इसे फ़ौरन वापस ले।"
इस मांग को लेकर ट्विटर समेत तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इस हफ़्ते ‘#60-40 नाय चलतौ’ से कैंपेन चलाया गया। इस कैंपेन में बड़ी संख्या में प्रदेश के छात्रों और युवाओं ने हिस्सा लिया।
आंदोलनकारी छात्र युवाओं का बड़ा तर्क है कि, "जिस अलग राज्य के लिए उनके परिजनों से लेकर पुरखों तक ने सात दशक से भी अधिक की लंबी लड़ाई लड़ी। अनेकानेक राज्य-दमन सहे, गोलियां खाईं और जेल गए। आज उन सपनों को जब पूरा किए जाने का समय आया है तो हमें ही हाशिए पर धकेल दिया जा रहा है। पड़ोसी राज्य बिहार, बंगाल व ओडिसा तक में उस राज्य के लोगों व युवाओं के हित में नियोजन नीतियां बनाकर लागू की जा रही हैं। लेकिन झारखंड प्रदेश को ऐसा खुला चौराहा बना दिया गया जहां कोई भी कहीं से आकर यहां की नौकरियों पर कब्ज़ा जमा सकता है। मिसाल के लिए किसी भी विभाग और सेक्टर की सरकारी नौकरियों में हुई बहालियों का जायज़ा ले लिया जाय तो सच्चाई ख़ुद ब ख़ुद सामने आ जाएगी और झारखंड के मूल निवासियों के साथ की जा रही “राजनैतिक हक़मारी” को उजागर कर देगी। लेकिन अब यह सब नहीं चलने दिया जाएगा, हमें भी हमारा संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार देना होगा जिसे हम लेकर रहेंगे।"
नई नियोजन नीति के ख़िलाफ़ प्रदेश के छात्र-युवाओं का ज़बरदस्त विरोध लगातार जारी है। देखना है कि हेमंत सोरेन सरकार जो ख़ुद के दावे के मुताबिक़ केंद्र की भाजपा सरकार की रुकावटों-उपेक्षाओं को दिन-रात झेल रही, अब माले विधायक विनोद सिंह की मांग पर क्या संज्ञान लेती है।
उन्होंने (विनोद सिंह) सरकार को ज़ोर देते हुए कहा कि, "हेमंत सरकार से मेरा अनुरोध है कि वह व्यापक जन आकांक्षाओं के अनुरूप राज्य हित में स्थानीयता आधारित नियोजन व आरक्षण के पक्ष में खड़े होकर प्रदेश के आंदोलनकारी छात्र-युवाओं के साथ जल्द से जल्द संवाद शुरू करने के साथ-साथ केंद्र सरकार पर भी दबाव डालने के संयुक्त कार्यक्रम पर अपने क़दम बढ़ाए। झारखंड के एक जन प्रतिनिधि की हैसियत से मैं यह भी मांग करूंगा कि राज्य स्थित केंद्रीय प्रतिष्ठानों और उद्योगों में भी समीक्षा कर स्थानीयता और सामाजिक स्थिति के अनुसार झारखंडी युवाओं का नियोजन करे।"
ये सही है कि “स्थानीयता की राजनीति” का मुद्दा अक्सर सत्ताधारी सियासी दलों के लिए एक कारगर राजनैतिक अस्त्र का काम करता रहा है। लेकिन अबकी बार यह सवाल झारखंड राज्य निर्माण के लिए लड़ने वाले उन लाखों लोगों की ज़िंदगी की वास्तविक बेहतरी से जुड़ा मामला है जो हर लिहाज़ से देश के संविधान और लोकतंत्र के तक़ाज़े से सीधे तौर पर जुड़ा है।
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