कटाक्ष: एक माफ़ी का सवाल है, बाबा!
आखिर से विपक्ष वाले चाहते क्या हैं? हमेशा तो मोदी जी के पीछे पड़े रहते थे कि माफी मांगो, माफी मांगो। कभी किसानों के साल भर से लंबे आंदोलन में सात सौ किसानों की मौतों के लिए माफी, तो कभी किसानों से लेकर छात्रों तक की आत्महत्याओं के लिए माफी। हिंडनबर्ग से देश की बेइज्जती कराने के लिए माफी। प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक से लेकर भूख सूचकांक तक पर देश को रसातल में पहुंचा देने के लिए माफी। गौरक्षा वगैरह के नाम पर बढ़ती मॉब लिंचिंग के लिए माफी। डेमोक्रेसी का दम निकाल देने के लिए माफी। धारा-370 हटाने के बाद भी, आतंकवादी हमलों में आए दिन वर्दीवालों की शहादत के लिए माफी। लद्दाख बार्डर पर ना कोई घुसा है वाले बयान के लिए माफी। नयी संसद से लेकर राम मंदिर तक के टपकने के लिए माफी। और तो और, कंगना राणावत के मुंह खोलने के लिए भी माफी।
और हमेशा इसकी शिकायत करते थे कि मोदी जी कभी माफी क्यों नहीं मांगते? 2002 के गुजरात के नरसंहार तक के लिए माफी नहीं मांगी! और भी न जाने किन-किन माफियों की उधारी गिनाते थे, जो नहीं मांगी गयीं।
पर अब जब मोदी जी ने महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की मूर्ति के टूटकर गिरने के लिए माफी मांगी है, बाकायदा चरणों में शीश नवाकर माफी मांगी है, शिवाजी महाराज से ही नहीं, उनकी पूजा करने वालेे आगामी विधानसभा चुनाव के करोड़ों वोटरों से भी माफी मांगी है, तो विरोधी इसे माफी मानने में भी नखरे कर रहे हैं। कहते हैं कि ये माफी मांगना तो कोई माफी मांगना नहीं है, बच्चू!
हम पूछते हैं कि मोदी जी की माफी में कमी क्या थी? क्या यही कि माफी मांगी शिवाजी की मूर्ति के धराशायी होने की और उसके साथ सावरकर का नाम जोड़ दिया। लेकिन, सावरकर का नाम जोड़ना तो हर तरह से बनता है। और माफी मांगने के प्रसंग में तो सबसे ज्यादा बनता है। मोदी जी पहली बार माफी मांग रहे थे, तो जाहिर है कि इस मौके पर झिझक भी होगी, संकोच भी होगा। ऐसे मौके पर सावरकर को नहीं याद करते तो किस को याद करते थे। सावरकर ने अंगरेजों को सात-सात माफीनामे भेजे थे। एक तरह से माफी मांगने के एक्सपर्ट ही थे। संघ के प्रात:स्मरणीयों में माफी मांगने का इस दर्जे का एक्सपर्ट दूसरा कौन होगा? माफी के मौके पर मोदी जी सावरकर का स्मरण नहीं करते, तो क्या एक इमरजेंसी के मौके पर ही इंदिरा गांधी को माफी की चिट्ठियां लिखने वाले, तब के आरएसएस के सरसंघचालक, देवरस का स्मरण करते। कहां सात-सात माफियां और कहां एक माफी, दोनों में कोई वास्तविक च्वाइस भी बनती है क्या?
और रही सावरकर की माफियों का शोर मचाने के लिए, अपने विरोधियों से माफी मंगवाने की मोदी जी की मांग, तो उसमें गलत क्या है? मोदी जी ही अकेले माफी क्यों मांगें? मोदी जी ही सबसे पहले माफी क्यों मांगें? दीवार फिल्म याद है, अमिताभ बच्चन ने क्या कहा था? जाओ पहले उससे दस्तखत लेकर आओ और उससे और उससे! दीवार फिल्म हिट हुई थी कि नहीं, पब्लिक को पसंद आयी थी कि नहीं। फिर पब्लिक की पसंद का ख्याल कर, मोदी जी भी क्यों पब्लिक से इसकी डिमांड नहीं करते कि पहले उस राहुल से माफी मंगवा के आओ, जिसने सावरकर को माफीवीर की गाली दी थी। पर मोदी जी ने पहले माफी मंगवाकर आओ की मांग की? नहीं की। उल्टे राहुल माफी मांगना तो दूर, सावरकर को माफीवीर कहने के लिए अदालत तक चले गए। मोदी जी ने फिर भी बाकायदा माफी मांगी या नहीं!
ये तो माफी नहीं है, माफी नहीं है करने वालों से, हम एक बात पूछना चाहते हैं। क्या यह मोदी जी की मेहरबानी ही नहीं है कि उन्होंने माफी मांगी है। पहले माफी नहीं मांगी थी। एक बार भी माफी नहीं मांगी थी। कहने वालों के बार-बार कहने के बाद भी माफी नहीं मांगी थी। किसी एक बात के लिए भी माफी नहीं मांगी थी। तब क्या किसी ने उनका कुछ बिगाड़ लिया था? उल्टे उनका तो पद बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों माफी मांगने से इंकार किया उन्होंने। पद बढ़ता गया और छाती का साइज भी। शुरू में छप्पन इंच थोड़े ही रही होगी। छप्पन इंच के साइज के बावजूद, इस बार मोदी जी ने माफी मांगी है। इस बार भी नहीं मांगते तो क्या कोई कुछ उखाड़ लेता। फिर भी उन्होंने माफी मांगी है। इसके बावजूद, उनका शुक्रिया अदा करने के बजाए, विरोधी उनकी माफी पर ही सवाल उठा रहे हैं। इतना नाशुक्रापन कहां से लाते हैं ये लोग।
फिर सच पूछिए तो इस मामले मेें मोदी जी की माफी तो किसी भी तरह बनती ही नहीं थी। मूर्ति शिवाजी की। लगायी गयी सिंहदुर्ग में मालवन फोर्ट में, वह भी नौसेना दिवस के मौके पर। मूर्ति गिरायी हवाओं ने। इस सब में बेचारे मोदी जी कहां से आ गए? सिर्फ इसलिए कि करीब नौ महीने पहले बाकी हर चीज के उद्घाटन की तरह, इस मूर्ति का भी अनावरण मोदी जी ने ही किया था, मूर्ति के गिरने के लिए मोदी जी को माफी क्यों मांगते? सीएम शिंदे ने तो मूर्ति के गिरने की खबर मिलते ही कहा भी था-सारा कसूर तेज हवाओं का था। आखिर, नौ महीने से मूर्ति खड़ी ही हुई थी। हवाएं अचानक इतनी उग्र क्यों हो गयीं कि मूर्ति गिर ही गयी। और सिर्फ गिरी ही नहीं, गिरकर कई-कई टुकड़ों में टूट गयी? इसके पीछे कोई बड़ी साजिश भी तो हो सकती है, महाराष्ट्र और देश को बदनाम करने की।
और, हवाओं के बाद अगर किसी का कसूर बनता था, तो नौसेना का, आखिर नेवी डे पर यह मूर्ति खूब तड़क-भड़क के साथ लगायी गयी थी। तड़क-भड़क तो खूब थी, पर क्या मुहूर्त भी शुभ था? नहीं तो मूर्ति बनाने का आर्डर देने वाले निकाय का कसूर होगा। या फिर मूर्ति बनाने वाला का। या फिर मूर्ति में लगी समग्री का। या फिर मूर्ति खड़ी करने वालों का। या फिर मूर्ति की जगह की साफ-सफाई करने वाले का या चौकीदार का। माफी मांगनी ही थी तो वे मांगते। पर माफी मांगी है, मोदी जी ने।
चुनाव मोदी जी से क्या-क्या नहीं करा सकता है। माफी तक मंगवा सकता है, वह भी तेज हवाओं की गलती के लिए। इसीलिए तो मोदी जी एक देश एक चुनाव चाहते हैं। माफी भी मांगनी पड़े तो भी पांच साल में सिर्फ एक बार मांगनी पड़े। कम से कम बार-बार माफी मांगने के चक्कर में, माफीवीर कहलाने का खतरा तो नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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