तिरछी नज़र: गारंटी है, पुलों के गिरने की गारंटी है
हमारे देश की खासियत यह है कि मौसम कोई भी हो, लोग मौसम की मार से मरना नहीं छोड़ते हैं। जब गर्मी अधिक पड़ रही थी, ताड़ब-तौड़ लू चल रही थी, तापमान पचास डिग्री को छू रहा था, लोग गर्मी गर्मी से मर रहे थे और हम प्रार्थना कर रहे थे कि बारिश आए। सूर्य देवता से प्रार्थना कर रहे थे कि जरा शांत हो जाएं और इंद्र देव आ जाएं। और अब इंद्र देवता आ गए हैं, बरस रहे हैं, तो भी हमें चैन नहीं है। हमारा मरना अब भी जारी है।
बारिश में लोग मरते हैं, नदियों के उफान से, बांध बह जाने से, बाढ़ आने से, पुलों के टूट जाने से, पहाड़ों के दरक जाने से। शहर तो हमने ऐसे बना दिए हैं कि वर्षा ऋतु में थोड़ी सी बारिश पड़ी नहीं कि हर शहर वैनिस बन जाता है। केवल उदयपुर ही नहीं, हर शहर झीलों का शहर बन जाता है। बारिश के बाद सड़कों पर निकलो तो ऐसा लगता है कि बाधा दौड़ में हिस्सा ले रहे हों या फिर स्टीपल चेज़ खेल रहे हों। अगर गाड़ी में सवार हो तो सड़कों पर रोलर कॉस्टर का मज़ा आ जाता है।
यह सब देश की सरकारों ने किया है। देश का इतना विकास किया है कि विकास विनाश प्रतीत होने लगा है। यह विनाश सरकार योजना बना कर करती है। इस योजनाबद्ध विकास की वजह से ही इतना योजनाबद्ध विनाश हो रहा है। यह विकास हमने पहाड़ों पर भी किया है। पहाड़ों का तो विकास कर उन्हें पूरा प्लेन बनाने की योजना है।
बिहार में जो इतने पुल गिर रहे हैं, यह भी सरकार जी की विकास योजना के तहत ही गिर रहे हैं। पुल गिरने का देश के विकास में बहुत बड़ा योगदान है। जब पुल गिरता है तो दोबारा बनता है। नेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों, सभी की जेब दूसरी बार भरती है। दूसरी बार ही नहीं, बार बार गिरे तो बार बार भरती है। तीसरी, चौथी, पाँचवी बार भरती है।
हंसी-मज़ाक अलग, सच्ची बात तो यह है कि पुल गिरने से, सड़क टूटने से रोजगार का सृजन होता है। देश की जीडीपी बढ़ती है। एक ही पुल को, एक ही सड़क को बारम्बार बनाया जाए तो मजदूरों को बार बार दिहाड़ी मिलती है और उनके सुपरवाइजर को, ओवरसीयर और इंजीनियर को भी वेतन मिलता है। कुछ मजदूर तो किसी पुल या सड़क के किनारे ही बस जाते हैं। उन्हें इन्हें बनाते वक्त ही पता होता है कि यह पुल, यह सड़क बार बार टूटेगी और हमें यहीं बार बार रोजगार मिलेगा।
पुलों के बार बार गिरने और बार बार बनाने से सिर्फ रोजगार का ही सृजन नहीं होता है, सीमेंट, रोड़ी, बदरपुर, सरिया आदि जैसी चीजों की खपत भी बढ़ती है। इनको बनाने वाले उद्योग धंधे उन्नति करते हैं। देश प्रगति के पथ पर चलता है। विद्युत उद्योग को ए ग्रेड के नाम पर सी ग्रेड कोयला सप्लाई करने वाले उद्योगपति जब सरकार को सीमेंट सप्लाई करते हैं तब भी ऐसा ही करते हैं। विज्ञापन बनाते हुए तो ऐसा सीमेंट देते हैं कि छत पर हाथी भी चढ़ जाए तो भी कुछ न हो पर जब उस सीमेंट से पुल बनता है तो ऐसा बनता है कि आदमी के चलने से भी गिर जाता है। विज्ञापन में बनी दीवार तो बुलडोज़र से भी नहीं टूटती है पर उसी सीमेंट से बनी सड़क नारियल फोड़ने से भी टूट जाती है।
ऐसा नहीं है कि सरकार जी इस सब से अनभिज्ञ हैं। सरकार जी ड्रोन से सब कुछ देखते रहते हैं, सारी जानकारी लेते रहते हैं। कौन सा पुल गिरा, कौन सी सड़क बही, सरकार जी को सब पता होता है। कई बार तो पहले से ही पता होता है कि कौन सा पुल गिरेगा, कौन सी सड़क बहेगी। सरकार जी को यह ड्रोन के जरिये पता होता है। यह भी पता होता है कि कौन सा ठेकेदार, अफसर, मंत्री कहाॅ इन्वॉल्वड है। और शायद यह भी कि हिस्सा कहाँ तक पहुँचा है।
सरकार जी का काल पुल गिरने के लिए ही बना है। सरकार जी जानते हैं कि पुल जोड़ने के लिए बनते हैं। एक किनारे को दूसरे किनारे से जोड़ने के लिए बनते हैं। दूरियाँ कम करने के लिए बनते हैं। आवागमन के लिए बनते हैं। पुल बनने से लोग एक दूसरे से मिलते जुलते हैं, एक दूसरे को समझते हैं, उनके दिल मिलते हैं। सरकार जी बस यही नहीं चाहते हैं। सरकार जी नहीं चाहते हैं कि लोग मिलें, दूरियाँ कम हों, दिल दिल से मिलें। इसलिए सरकार जी जो पुल बनाते हैं, ज्यादा दिन चलने के लिए नहीं बनाते हैं। फौरी फायदे के लिए बनाते हैं। इसीलिए सरकार जी के काल में पुल ज्यादा गिरते हैं।
सरकार जी पुल बनाते हैं, गिनती बढ़ाने के लिए बनाते हैं। सरकार जी पुल बनाते हैं, उद्घाटन करने के लिए बनाते हैं। सरकार जी पुल बनाते हैं तो चुनाव के लिए बनाते हैं। जब गिनती हो जाए, उद्घाटन हो जाए, चुनाव निपट जाएं तो पुल गिरता रहे, क्या दिक्कत है। जब दोबारा पुल बनेगा, उसकी दोबारा गिनती होगी, दोबारा उद्घाटन होगा, दोबारा चुनाव होगा तो दोबारा लाभ मिलेगा। एक ही पुल से दो बार, तीन बार, चार बार लाभ मिले, इसलिए जरूरी है, पुल गिरते रहें, पुल टूटते रहें।
सरकार जी को ‘पुल’ गिराने में महारत हासिल है। अभी छह साल पहले सरकार जी ने एक सत्तर साल पुराना पुल (अनुच्छेद-370) गिराया था। उस पुल को गिराने के लिए सरकार जी को कर्फ्यू लगाना पड़ा, लोगों को घर में नज़रबंद करना पड़ा था। उस पुल के गिराने का जिक्र सरकार जी चुनावी सभाओं में आज तक करते हैं। किसी पुल को गिराने का इतने लम्बे समय तक लाभ तो इतिहास में आज तक किसी ने नहीं उठाया होगा।
सरकार जी सिर्फ तोड़ते ही नहीं हैं। कुछ चीजें बनाते हैं और बहुत ही मजबूत बनाते हैं। दीवारें तो सरकार जी बहुत ही मजबूत बनाते हैं। और उसे सींचते भी रहते हैं। सरकार जी दीवारें बनाते हुए तो ध्यान रखते हैं कि कोई ए ग्रेड के सीमेंट का वायदा कर सी ग्रेड का सीमेंट न थमा दे। अब कावंड़ियों के रास्ते में किया गया नया प्रबंधन इसी दीवार को सींचने का ही, मजबूती प्रदान करने का ही एक प्रयास है।
सरकार जी की गारंटी है, और पक्की गारंटी है, पुल चाहे कितने भी कमजोर बनें, टूटने और गिरने वाली बनें। सड़कें भी चाहे कितनी भी कमजोर बनें, गड्ढों और पहली ही बारिश में बह जाने वाली बनें। पर दीवारें हमेशा पक्की ही बनेंगी।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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