आर.एस.एस धर्मनिरपेक्षता के लिए बड़ा खतरा: पिनाराई विजयन
मैं यह कह कर अपनी बात शुरू करना चाहूँगा कि मुझे इस तरह की रैली में हिस्सा लेकर बेहद खुशी हो रही है। ख़ासतौर से क्योंकि यह धार्मिक सद्भाव के लिए आयोजित की गयी है। आज के हालात में हमारे देश को धार्मिक सद्भावना को बचाए रखने की बेहद ज़रूरत है। पूरे देश में लगातार हमारी धार्मिक सद्भावना में दरारें पैदा किए जाने के प्रयास हो रहे हैं। सबसे ज़्यादा अजीब बात यह है कि इन सारी घटनाओं के पीछे आर.एस.एस. का हाथ है और वह ही हमारे देश की सरकार भी चला रही है। जब से आर.एस.एस. का गठन हुआ है वह इस बारे में खुलकर बोलते आए हैं। आर.एस.एस. ने हमेशा ही विभिन्न धर्मों के बीच वैमन्स्य बढ़ाने और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने का काम किया है।
आर.एस.एस. हमारे समाज की मुख्यधारा का संगठन नहीं है। दुर्भाग्य की बात है कि फिर भी इस संगठन के पास हमारे देश की नीतियाँ निर्धारित करने की शक्ति है। हमारे देश की सरकार के नेता जिसमें कि हमारे प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, आर.एस.एस. के फ़रमानों के मुताबिक ही चलते हैं। आर.एस.एस. का गठन सन् 1925 में हुआ। इस दौर में आज़ादी का संघर्ष मज़बूत होता जा रहा था। जब आज़ादी का संघर्ष अपने उफ़ान पर पहुँचा तब तक आर.एस.एस. 22 वर्षों से काम कर रही थी। लेकिन हमें याद रखना होगा कि आज़ादी की लड़ाई में आर.एस.एस. ने कोई भूमिका नहीं निभाई। हालांकि इन्होंने अपनी एक अलग भूमिका ज़रूर निभाई। उस दौर में बने लगभग सभी संगठनों ने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और यही माना कि अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना ही पड़ेगा। अंग्रेज़ों के देश छोड़ने की माँग करने वाले संगठनों में आपसी मतभेद भी रहे। लेकिन सभी एक बात पर एकमत थे कि भारत को आज़ादी मिलनी चाहिए। यहीं आर.एस.एस. सबसे अलग था। उस समय न सिर्फ़ आर.एस.एस. ने आज़ादी की लड़ाई से किनारा किया, बल्कि वे अंग्रेज़ों के भारत में रहने के भी पक्ष में थे। सावरकर ने खुद वायसराय से मिलकर स्वीकार किया कि संघ परिवार आज़ादी की लड़ाई का हिस्सा नहीं है और उसके हित अंग्रेज़ों के हितों से जुड़े हैं। आर.एस.एस. की परंपरा रही है कि उसने हमारी आज़ादी की लड़ाई को धोखा दिया है।
आर.एस.एस. कभी भी इस देश को एक अखण्ड देश मानने और देश के लोगों में एकता बढ़ाने के लिए तैयार नहीं था। शुरूआत से ही वे आम जनता को सांप्रदायिक आधार पर बाँटने की कोशिश करते रहे। इसलिए सांप्रदायिक दंगों की अगवायी हमेशा ही आर.एस.एस. ने की है। हमें यह याद रखना होगा कि आर.एस.एस. एक ऐसा संगठन है जो देश और लोगों की एकता के खिलाफ है। उन्होंने हमेशा हमारे देश के लोगों को बाँटा है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि महात्मा गाँधी की हत्या क्यों की गई? कोई यह नहीं कह सकता कि महात्मा गाँधी ने आर.एस.एस. के किसी व्यक्ति पर हमला किया। फिर भी, संघ परिवार के नेतृत्व में उनकी हत्या की लम्बी साज़िश रची गयी। हमें यह समझना होगा कि जैसे गोडसे ने अपने हाथ में पकड़े हथियार का इस्तेमाल गाँधी जी की हत्या करने के लिए किया, उसी तरह गोडसे का इस्तेमाल आर.एस.एस. ने किया। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जब गाँधी जी की हत्या की गयी, तब जहाँ जहाँ आर.एस.एस. मौजूद थी उसने मिठाई बाँटी थी।
लोगों में गाँधी जी की हत्या करने वाली आर.एस.एस. के खिलाफ गुस्सा भड़का, और आर.एस.एस. पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उस समय आर.एस.एस. ने केंद्र के शासकों को खुश करने की बड़ी कोशिशें की ताकि यह प्रतिबंध हट जाए। प्रतिबंध हट जाने के बाद भी आर.एस.एस. अपने पुराने रास्ते पर ही चलती रही। हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि आर.एस.एस. किस तरह की विचारधारा में विश्वास रखती है। अपने गठन के 5 साल बाद, आर.एस.एस. के संस्थापकों में से एक बी.एस. मुन्जे, उस वक्त के कुछ अंतर्राष्ट्रीय नेताओें से मिलने गये। वे ऐसे लोगों से मिले जो संघ परिवार के लिए आदर्श की तरह थे। उनमें से एक था मुसोलीनि। आर.एस.एस. ने मुसोलीनि के संगठन की फ़ासीवादी संरचना को पूरी तरह से अपना लिया। मुसोलीनि के फ़ासीवादी संगठन में ऐसे कैम्प हुआ करते थे जहाँ उनके काडर को प्रशिक्षण दिया जाता था। यह देखकर मुन्जे बहुत उत्साहित हुआ। मुन्जे ने मुसोलीनि इस प्रशिक्षण के बारे में सूक्ष्मता से बात की और यह भी चर्चा की कि भारत में इसे किस तरह से लागू किया जा सकता है। यही सांगठनिक ढाँचा आर.एस.एस. ने भारत में अपनाया। मुसोलीनि का यही फ़ासीवादी सांगठनिक स्वरूप आर.एस.एस. आज भी पालन कर रही है।
आर.एस.एस. ने अपनी विचारधारा जर्मनी के हिटलर के नाज़ीवाद से ली है। दुनिया में कोई दूसरा संगठन हिटलर द्वारा अल्पसंख्यकों के विनाश पर आर.एस.एस. से ज़्यादा खुश नहीं हुआ। दुनिया के तमाम देशों और संगठनों ने हिटलर की करतूतों की निंदा की। जबकि आर.एस.एस. ने इसका भरपूर स्वागत किया और साथ ही प्रशंसा भी की।
उस दौर में आर.एस.एस. ने खुले तौर पर यह स्वीकार किया कि भारत को अपनी अंदरूनी समस्याओं से निपटने के लिए जर्मनी के नक्श-ए-कदम पर चलना चाहिए। हिटलर ने जर्मनी के अल्पसंख्यकों की हत्या की और उन्हें तबाह कर दिया। हिटलर द्वारा यहूदियों का नरसंहार तो हम सभी को याद है। इस तरह के बर्बर तरीकों से आर.एस.एस. बहुत प्रभावित और उत्साहित हुई। गोलवालकर सहित आर.एस.एस. के कई मुख्य विचारकों ने खुलेआम हिटलर के कृत्यों की प्रशंसा में लेख लिखे। यही नीतियाँ आर.एस.एस. ने खुद भी अपनायीं। आर.एस.एस. ने हिटलर के नाज़ीवाद को अपनी विचारधारा के रूप में अपनाया। आप देख सकते हैं कि आर.एस.एस. वही भाषा बोलती है जो हिटलर बोलता था। हिटलर ने अल्पसंख्यकों से कैसे निपटा जाए, इस बारे में लिखा। आर.एस.एस. ने इसी नीति को, इसी स्वरूप में यहाँ अपनाया। हिटलर के लिए वहाँ सिर्फ़ एक ही वर्ग था जिसे वह अल्पसंख्यक के तौर पर देखता था- यहूदी। हिटलर यहूदियों और कम्यूनिस्टों, जिन्हें वह बोलशेविक कहता था, को अपने देश के लिए अंदरूनी दुश्मन मानता था। यही मत आर.एस.एस. द्वारा उनके अपने मत के तौर पर लिखा गया। और उन्होंने इसे लागू भी किया। यहाँ आर.एस.एस. ने कहा कि देश के मुख्य अल्पसंख्यक- मुस्लिम और ईसाई- ही देश के अंदरूनी दुश्मन हैं। इनके साथ, हिटलर की ही तरह, उन्होंने कम्युनिस्टों को भी देश का अंदरूनी दुश्मन बताया। इस तरह, जैसे जर्मनी में हिटलर के लिए यहूदी और कम्युनिस्ट दुश्मन थे, उसी तरह आर.एस.एस. के लिए भारत में मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट दुश्मन थे।
आर.एस.एस. ने इसी नीति को पूरे देश में लागू किया। यह देखा जा सकता है कि आर.एस.एस. ने ही देश में कई सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया। हमारे देश में ऐसे कई सांप्रदायिक दंगें हुए हैं जिनमें हज़ारों लोगों ने अपनी जान गंवायी। आर.एस.एस. ने ही इन दंगों का नेतृत्व किया। उनके पास इसके लिए खास प्रशिक्षण है। जैसे, कि दंगा कैसे करवाया जाता है? कैसे सांप्रदायिक तनाव पैदा किया जाता है? एक बार जब सांप्रदायिक तनाव दंगों में बदल जाए तो किस तरह झूठ और अफवाहों को फैलाकर आम जनता को और भी भड़काया और उकसाया जाता है? आर.एस.एस. के पास इन सबके लिए खास प्रशिक्षण सुविधायें हैं। इन सभी बातों में एक खास एकरूपता आर.एस.एस. द्वारा करवाये गये दंगों में देखी जा सकती है। यह साफ देखा जा सकता है कि कुछ खास तरीके हैं जो आर.एस.एस. के प्रशिक्षण के दौरान सिखाये जाते हैं और जिन्हें दंगों के दौरान इस्तेमाल किया जाता है।
आर.एस.एस. धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। उनका शुरू से ही यह मानना रहा है कि भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं होना चाहिए। 17 जुलाई 1947 को आर.एस.एस. के मुखपत्र- ऑर्गनाइज़र- में ‘‘नेशनल फ़्लैग’’ नाम से एक संपादकीय छपा। हमारे राष्ट्रीय ध्वज एक गहन चर्चा के बाद चुना गया था। आर.एस.एस. इसके बिल्कुल खिलाफ़ थी। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज का कड़ा विरोध किया और कहा कि इसमें हमारे देश के कोई भी तत्व नहीं है और इसलिए यह हमारे देश के लिए उपयुक्त नहीं है। ‘इंडिया’ नाम से भी उन्हें आपत्ति थी। 31 जुलाई 1947 को इसी पत्रिका में यह छपा कि देश का नाम ‘हिन्दूस्थान’ (जो कि ‘हिन्दूस्तान’ से अलग है) होना चाहिए, न कि ‘इंडिया’। यह सब उनकी नीतियों को ही नतीजा था। शुरू से ही उनकी समझ यही रही है कि भारत देश एक धर्म आधारित देश होना चाहिए। एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की संकल्पना के वे खिलाफ हैं। इसीलिए, संसद के भीतर, हमारे शासकों में से एक, देश के गृहमंत्री, ने यह कहा कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता को जगह देने के कारण ही हम बहुत सी परेशानियाँ झेल रहे हैं। हमें यह समझना होगा कि यही आर.एस.एस. है।
और आज इसी आर.एस.एस. के पास हमारे देश की नियती निर्धारित करने की शक्ति आ गयी है। वे बेहद असहिष्णुता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। उनके बारे में बात करने लगे तो कई घण्टे बीत जाएगें। हमारे देश में इनके नेतृत्व में बहुत क्रूरता बरपाई गई है। आर.एस.एस. आज देश में असहिष्णुता का प्रतीक बन चुकी है। यही असहिष्णुता हमारे शासकों में आ गई है। जैसे उन्होंने महात्मा गाँधी को मारा, उसी तरह उन्होंने देश के कई और जाने-माने और लोकप्रिय लोगों की भी हत्या की। एम.एम. कलबुर्गी की हत्या अभी भी हमारे ज़हन में ताज़ा है। हमारे देश के धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले सभी लोगों को इस हत्या से बहुत दुख हुआ। कलबुर्गी एक प्रगतिशील लेखक थे। उन्हें क्यों मारा गया? सिर्फ़ कलबुर्गी ही नहीं, गोविंद पानसरे भी- उन्होंने आर.एस.एस. के असल चेहरे को लोगों के सामने बेनक़ाब किया। उन्होंने आर.एस.एस. के गलत अभियानों को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर बेनक़ाब किया। गोविंद पानसरे को असहिष्णुता के चलते मार दिया गया। नरेन्द्र दालभोलकर अंधविश्वास और बुरे रीति-रिवाज़ों के खिलाफ मज़बूती से लड़े। उन्हें भी मार दिया गया। यह सब संघ परिवार की अगवाई में हुआ। इन तीनों, जिनकी हत्या कर दी गई, ने कुछ भी गलत नहीं किया था। प्रगतिशील लेखकों के तौर पर इन्होंने हमारे देश, देश की जनता के लिए हमेशा विचाररत रहे। और इसी विचारशीलता के प्रति असहिष्णुता ने ही आर.एस.एस. को इनकी हत्या करने के लिए प्रेरित किया।
आर.एस.एस. ने कई लोगों को धमकाया है। इनमें न सिर्फ़ वे लोग हैं जिनकी हत्या कर दी गई, बल्कि इनमें देश के कई और जाने-माने लोग भी शामिल हैं जो हमारे समाज की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं। आप सभी के.एस. भगवान को जानते हैं, और यह भी जानते हैं कि उन्हें संघ परिवार के द्वारा किस तरह धमकाया जा रहा है। इसी तरह, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता गिरीश करनाड़ को भी संघ परिवार ने नहीं बख्शा। आर.एस.एस. इस योजना के तहत काम कर रही है कि जो भी उसके विचारों सहमत नहीं है या उसके विचारों के सामने घुटने नहीं टेक देता, वह ऐसे लोगों को बरदाश़्त नहीं करेगी। कर्नाटक के युवा दलित कवि, हुचंुगी प्रसाद, का हाथ उनके चाकुओं को निशाना बना, खून बहाया गया। उसे धमकाया गया कि अगर उसने फिर कलम उठाने की कोशिश की तो उसकी अँगुलियाँ काट दी जायेगीं। यहाँ भी पत्रकार और लेखिका, चेतना थिरथाहल्ली, को भी आर.एस.एस. के विचारों के आगे घुटने न टेकने पर धमकी दी गयी। इस धमकी को नज़रअंदाज़ कर उन्होंने डी.वाई.एफ़.आई. के कार्यक्रम में शिरक़त की तो उन्हें और भी धमकियाँ दी गयीं। संघ परिवार द्वारा दी गयीं यह बेहद भद्दी धमकियाँ थीं जैसे कि उन पर तेज़ाब फेंक दिया जायेगा, उनका बलात्कार किया जायेगा आदि। ऐसे ही लेखक पेरूमल मुरूगल पर भी हमले किये गये... ऐसी परिस्थितियाँ खड़ी कर दी गयीं कि उन्हें निराश होकर कहना पड़ा कि उनके भीतर का लेखक मर चुका है। यह सब हमारे देश में हुआ। जिन घटनाओं का मैंने पहले ज़िक्र किया वह कर्नाटक में ही सिसिलेवार तौर पर हुई थीं।
विख्यात और सम्मानित लेखक यू.आर. अनंतमूर्ति अपनी मृत्यु शैया पर थे और उस समय को आर.एस.एस. ने उनके खिलाफ ज़हर उगलना शुरू करने के लिए उपयुक्त माना। उन्हें आर.एस.एस. ने पाकिस्तान का टिकट भेजा! विद्वानों और प्रसिद्ध व्यक्तियों को पाकिस्तान भेजने के लिए आर.एस.एस. बहुत उतावली है। हमारे राज्यों के कई लोकप्रिय व्यक्तियों के अलावा आर.एस.एस. शाहरूख खान और आमिर खान जैसे कलाकारों को भी पाकिस्तान भेजना चाहती है। केरल से ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता और पद्म भूषण विजेता एम.टी. वासूदेवन ने नोटबंदी के दौरान लोगों ने जिन मुश्किलों को सामना किया उनका उल्लेख किया। संघ परिवार और आर.एस.एस. उन्हें भी तुरंत पाकिस्तान भेज देना चाहते थे। केरल के मश्हूर फिल्म निर्देशक कमल को भी वे पाकिस्तान भेज देना चाहते थे। वे नंदिता दास को पाकिस्तान भेजना चाहते हैं। ये सब क्या है? हमारे देश के सभी मश्हूर लोगों को आर.एस.एस. के सामने समर्पण करना होगा! उन्हें स्वतंत्र सोच नहीं रखनी चाहिए, अपने विचारों को अभिव्यक्त नहीं करना चाहिए! आर.एस.एस. का कहना है कि अगर वे ऐसा करते हैं, अगर वे आर.एस.एस. से अलग विचार रखेगें तो उन्हें इस देश में रहने नहीं दिया जायेगा। इस देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें आर.एस.एस. को एक स्वर में एक ही बात कहना चाहती हैं- यह देश हम सबका है। आर.एस.एस. का इस देश पर कोई विशेषाधिकार नहीं है। यहाँ जो भी रहता है, उसे इस बात की आज़ादी है कि वह यहाँ रहे, अपनी बात आज़ादी से कहे, और जो वह चाहते हैं वह लिखें। आर.एस.एस. की असहिष्णु चरित्र के विरोध में तमाम धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट होना चाहिए।
आर.एस.एस. ने अल्पसंख्यकों को ख़त्म करने की पूरी कोशिश की है। यहाँ तक कि उन्होंने यह भी निर्धारित करने की कोशिश की कि लोग क्या खाएं और क्या न खाएं। उत्तर प्रदेश के दादारी में अख़लाक की मार-मारकर हत्या कर दिये जाने की पीछे यही कारण रहा। संघ परिवार के मुताबि़क, ‘‘तुम’’ ‘‘हमारे’’ खिलाफ़ हो क्योंकि तुम अल्पसंख्यक हो। इस वजह से एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या कर दी गई। खाने को तो सिर्फ़ उसे मारने के बहाने भर की तरह इस्तेमाल किया गया था। बाद में यह साबित हो गया था कि उसके घर से जो माँस बरामद हुआ था वह बकरे का था। जब अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा था, उसी समय देशभर और पूरी दुनिया ने यह देखा कि गुजरात के उना में 4 दलित युवकों को नंगाकर गाड़ी से बाँधकर बेरहमी से पीटा गया। दलितों से अपेक्षा की जाती है कि वह मरी हुई गायों की चमड़ी उधेडें, दूसरों के घरों के पैखाने साफ करें; उन्हें कुछ खास काम ही करने होते हैं। पुराने समय से चली आ रही वर्ण-व्यवस्था पर आधारित जाति व्यवस्था को आर.एस.एस. ने दलितों के खिलाफ इस्तेमाल किया। हरियाणा के मेवात में जो हम सभी ने देखा वो इसी विचार का एक संस्करण था। एक गरीब किसान और उसकी बीवी की आर.एस.एस. द्वारा हत्या कर दी गई। परिवार की दो युवा लड़कियाँ जो भागने में कामयाब हो गईं थीं, उनमें से एक के छोटे से बच्चे पर चाकू तानकर उन दोनों को लौटने पर मजबूर किया गया। उन्हें धमकाया गया कि उस बच्चे की गरदन काट दी जायेगी अगर वे दोनों लौटी नहीं तो। उसके बाद उन दोनों लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। परिवार के सभी दूसरे सदस्यों को बुरी तरह से पीटा गया। आर.एस.एस. हमारे देश में यह सब कर रहा है। मैंने जिन जगहों का ज़िक्र किया, इनके अलावा झारखण्ड, जम्मू और कश्मीर और पंजाब में भी गऊ माँस के बहाने बड़े-बड़े हमले किये गये।
यहाँ आप लोग देख रहे हैं कि संघ परिवार के ही लोग संघ परिवार के ही दूसरे लोगों की हत्या कर रहे हैं। आप सभी दक्षिण कन्नड़ और उड़ूपी जिलों में हुई हत्याओं से वाकिफ़ हैं, मुझे इनके विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं है। 19 फरवरी की सुबह को प्रताप पुजारी की हत्या कर दी गई। यह प्रताप पुजारी कौन था? वह हिन्दू जागरण वैदिके का कार्यकर्ता था, यह वही संगठन है जिसने कि आज हड़ताल घोषित की है। कतील मंदिर में यक्षगना में हिस्सा लेने आये लोगों को एक गेंग ने लूट लिया। और हमें पता चला है कि यह सूचना लीक न हो जाए इसलिए प्रताप की हत्या कर दी गई। इसी तरह से बीजेपी के सदस्य विनायक बलिंगा को मंदिर जाते हुए रोका गया और मार दिया गया। इस हत्या का मुख्य आरोपी नमो ब्रिगेड का संस्थापक नरेश शिनोई है। इसने बीजेपी की टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ा है। बीजेपी का सांसद नलिन कुमार कतील भी इस केस में आरोपी है। उडूपी में प्रवीन पुजारी की हत्या सिर्फ इस शक़ पर कर दी गयी कि वह मवेशियों की तस्करी करता था। वह भी बीजेपी का वर्कर था। उसे भी संघ परिवार द्वारा ही मारा गया। इस तरह आप जो यहाँ घटित होता देख रहे हैं वह यह है कि संघ परिवार के लोग संघ परिवार के ही अपने साथियों को मार रहे हैं।
आप सभी केरल के बारे में जानते हैं, किस तरह से श्री नारायन गुरू ने वहाँ सुधार आंदोलन शुरू किया और उसके बाद वहाँ क्या हुआ। कुछ साथियों ने मुझे बताया कि गुरू यहाँ भी आये और लोगों को भाषण दिया। पुनर्जागरण आंदोलन का केरल में नतीजा यह रहा कि वहाँ एक मज़बूत धर्मनिरपेक्ष समाज का विकास हुआ। ऐसी जगह पर आर.एस.एस. अपनी पैर जमाने की कोशिश कर रही है। केरल की सबसे मज़बूत ताकत यानि कम्युनिस्ट आंदोलन और खासकर सीपीएम, उसके सबसे बड़े दुश्मन हैं। उनका मानना है कि कम्युनिस्ट आंदोलन को ख़त्म करके वे केरल के समाज में सांप्रदायिकता को फैला सकते हैं। इसी तरह वहाँ आर.एस.एस. के हमले शुरू हुए थे। अगर आप केरल के इतिहास को देखें तो जानेंगे कि वहाँ लगभग 600 कामरेडो ने अपनी शहादत दी है। इनमें से 205 आर.एस.एस. द्वारा मारे गये। इन मारे गये कामरेडो ने कुछ गलत नहीं किया था। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की अपनी मज़बूत परंपरा को अपनाते हुए सांप्रदायिकता का पुरज़ोर विरोध किया था। आर.एस.एस. उनके प्रति बेहद असहिष्णु है। आर.एस.एस. कम्युनिस्ट आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए उन सभी कामरेडो की हत्या करने के लिए तैयार है जो धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए अपनी जान भी देने के लिए राज़ी हैं। केरल में आर.एस.एस. लगातार यही कर रही है।
धार्मिक सद्भावना के लिए आयोजित इस रैली में शिरक़त करने के लिए काॅमरेड श्रीरामा रेड्डी ने मुझे महीनों पहले न्यौता दिया था। मेरे लिए अब यह संभव हो पाया कि मैं यहाँ आ पाया। जब मेरे यहाँ आने की ख़बर सार्वजनिक हुई तो संघ परिवार की असहिष्णुता भी जग ज़ाहिर हो गई। आर.एस.एस. और बीजेपी के नेताओं ने यह ऐलान कर दिया कि वे मुझे कदम भी नहीं रखने देंगे। कुछ लोगों ने तो इतनी शेख़ी बघारी कि वे मुझे केरल से बाहर कदम नहीं रखने देंगे। इस बारे में एक बात साफ कर देना चाहता हूँ। केरल के मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने के नाते मैं कर्नाटक सरकार की सतर्कता की तारीफ़ करना चाहता हूँ कि उन्होंने आर.एस.एस. की धमकियों से बखूबी निपटा है। मैं कर्नाटक के मुख्यमंत्री और सरकार को इसके लिए धन्यवाद देता हूँ। आर.एस.एस. से निपटना का यही एक तरीका है कि उसके खिलाफ मज़बूती से खड़ा हुआ जाये। हम सभी को इससे सबक लेना चाहिए।
मुझे आर.एस.एस. से यह कहना है कि स्वाभाविक है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद मैंने जितनी भी यात्राएँ की पुलिस सुरक्षा में की और पुलिस पर मेरे सुरक्षा की ज़िम्मेदारी रही। उनके पास मुझे सुरक्षित रखने के लिए हथियार हैं। आप चाहें तो कह सकते हैं कि मैं हथियारों की सुरक्षा में यात्रा करता हूँ। हमारी शासन व्यवस्था की यह एक रिवायत है।
लेकिन आर.एस.एस. और उन सभी से, जो मुझे चुनौती देते हैं, मैं कहना चाहता हूँ कि मैं, पिनाराई विजियन, एक दिन आसमान से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अवतरित नहीं हुआ। ऐसा नहीं कि मैं तुम्हें, आर.एस.एस., को सीधे तौर पर नहीं जानता। मेरी राजनीतिक कार्यशीलता तुम्हें जानने और पहचानने से ही आगे बढ़ी है।
आज मैं हथियारों की सुरक्षा में घूमता हूँ। पर हमेशा से ऐसा नहीं था। एक वह समय भी था जब मैंने थालासेरी के ब्रेनन कॉलेज में पढ़ाई पूरी कर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया था। अगर आर.एस.एस. के नये लोग उन दिनों के बारे में नहीं जानते तो उन्हें आर.एस.एस. के अपने पुराने साथियों से उन दिनों के बारे में पूछना चाहिए। उन दिनों मैं मेरी तरफ उठे तुम्हारें चाकूओं और तलवारों के बीच घूमा करता था।
जब तुम उन दिनों मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सके, तो तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम आज मेरा कुछ बिगाड़ पाओगे?
तुम लोग मध्य प्रदेश की मेरी यात्रा को रोक पाने की बातें कर रहे हो। एक राज्य का मौजूदा मुख्यमंत्री होने के नाते जब मैं किसी अन्य राज्य में जाता हूँ तो यह बुनियादी शिष्टाचार है कि यदि उस राज्य की सरकार मुझसे कुछ कहे तो मैं उनकी बात मानूं। सरकार ने मुझसे कहा कि मैं वहाँ न जाऊँ और मैंने यह बात मान ली।
लेकिन यदि मैं एक मुख्यमंत्री न होता और सिर्फ़ पिनाराई विजयन होता तो इन्द्र (हिन्दू देवताओं का राजा) और चन्द्रमा भी मुझे वहाँ जाने से रोक नहीं सकते थे।
तो, तुम्हारी धमकियाँ मुझे डराने वाली नहीं। फिर क्यो फ़िज़ूल में ऐसे ब़यान देना?
हमारे देश ने हमेश ही ऐसी ताकतों का मज़बूती से जवाब दिया है। सभी प्रगतिशील ताकतों ने आज यहाँ पर इस दम्भी विचार, कि किसी को भी यहाँ आकर बोलने से रोके जाने की कोशिश की जाये, के खिलाफ़ बोला है।
मैं उन सभी प्रगतिशील लोगों और मीडिया का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने इस संदर्भ में आर.एस.एस. के खिलाफ़ आवाज़ उठायी है।
मैं इस कार्यक्रम की शुरूआत का एलान करता हूँ। मैं अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ। आप सभी को मेरी और से ढे़र सारी बधाई।
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