हरियाणा: निजी मेडिकल कॉलेज के छात्रों का अनशन जारी, प्रधानमंत्री से इच्छा मृत्यु की मांग
हरियाणा के झज्जर में एक निजी मेडिकल कॉलेज के छात्र पिछले एक हफ़्ते से प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। धरने के छठे दिन यानी 7 सिंतबर को एवं आमरण अनशन का पांचवां दिन है। अनशन पर बैठे दो छात्र योगिता और नीरज अस्पताल में भर्ती हैं, नीरज की स्थिति अभी भी गंभीर है। इन दोनों की स्थिति इतनी ख़राब थी कि इन्हे आईसीयू में भर्ती करना पड़ा। योगिता या नीरज से मिलने कोई भी प्रशासनिक या कोई भी सरकारी अधिकारी नहीं गए। इससे वहां के छात्रों में और भी ग़ुस्सा है।
अब छात्रों के इस आंदोलन को कई अन्य छात्र संगठनों ने भी अपना समर्थन किया, शुक्रवार को एसएफ़आई के राज्यसचिव विनोद गए और अपना समर्थन दिया। इसके अलावा वकीलों के संगठन आईएलयू झज्जर, कई अन्य जन-संगठन और कई पंचायतों ने भी अपना खुला समर्थन दिया है।
ओमप्रकाश धनकर और उनके साथियों पर छात्राओं के साथ मारपीट की
इतने दिनों से धरने पर बैठे छात्रों से मिलने या बात करने प्रशासन या सरकार का कोई भी आदमी नहीं गया है। शुक्रवार को अचानक से हरियाणा के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकर अपने कुछ समर्थकों के साथ धरना स्थल पर पहुंचे। जिसके बाद छात्रों ने ओमप्रकाश धनखड़ और उनके साथियों पर छात्राओं के साथ मारपीट और धक्का-मुक्की का आरोप लगाया। छात्रों ने कहा कि उन्होंने हमें डराया और कहा कि मैं अभी इसी समय तुम्हारा धरना ख़त्म कर दूंगा।
मंत्री और उनके साथियों के इस ग़लत रवैये की शिकायत छात्रों ने पुलिस को भी की और साथ में एक चिट्ठी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया, गवर्नर हरियाणा, मुख्यमंत्री हरियाणा, नेशनल विमन कमिशन और नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन को भी लिखी है।
ओम प्रकाश धनकर हरियाणा के कृषि मंत्री की इस हरकत को छात्रों ने सर्कस बताया और कहा इससे एक बात तो तय हो गई कि हरियाणा सरकार का नारा 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' मात्र एक जुमले से ज़्यादा कुछ नहीं है।
आपको बता दें कि योगिता और नीरज की तबीयत ख़राब होने के बाद उनका स्थान अंशुल और विकास ने ले लिया है।
प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने कहा, "कोई भी कॉलेज खुलने से पहले राज्य सरकार उसमे दाख़िल हुए छात्रों की ज़िम्मेदारी लेने का घोषणा पत्र भारत सरकार को देता है, उसे Essentiality सर्टिफ़िकेट कहते हैं। परंतु हरियाणा सरकार पिछले 3 साल से अपनी ज़िम्मेदारियों से भागती आ रही है। हम आप सब से यह पूछना चाहते हैं कि क्या आप या नेताओं में से कोई भी नेता हमारे जैसे बने हुए डॉक्टरों के पास इलाज करवाना चाहेंगे?"
वर्ल्ड कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च की वैधता मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने ख़ारिज़ कर दी है। इस कॉलेज की शुरुआत 2016 से हुई, 2016 में यहां 150 बच्चों का दाख़िला हुआ। इसके बाद अगले 3 सालों में यहां दाख़िला नहीं हुआ। इस बार 2016 में जिन छात्रों ने एडमिशन लिया था उनकी भी मान्यता रद्द कर दी गई है। एमसीआई द्वारा 31 मई 2019 को जारी रिपोर्ट में इस कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों के रिनुअल पर भी रोक लगा दी है। इसके साथ ही एमसीआई ने किसी नए एडमिशन पर भी रोक लगा दी है।
ये सभी छात्र वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज झज्जर हरियाणा के MBBS कोर्स के हैं। इन्होंने इससे पहले जंतर मंतर दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर चुके हैं। यह कॉलेज आज तक एक बार भी मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा कराए गए एक भी निरीक्षण को पास नहीं कर पाया है। पिछले 3 साल से छात्रों पढ़ाने के लिए ना तो कोई डॉक्टर मौजूद हैं ना ही वहां पर क्लीनिकल शिक्षा के लिए कोई मरीज़ उपलब्ध है।
कॉलेज ने एक अख़बार की रिपोर्ट में यह दावा किया है कि उनके पास फ़ैकल्टी की कोई कमी नहीं है। उन्होंने इस बाबत एक लिस्ट भी जारी की थी। लेकिन इस लिस्ट पर सवाल करते हुए अनशन पर बैठे छात्र अंशुल ने कहा, "जिन फ़ैकल्टी के नाम दिए हैं उस संबंध में हम आपको बताना चाहते हैं कि एमबीबीएस के कोर्स के लिए कुल 18 विषय होते हैं जिनमें प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिए के 8 से 10 डॉक्टर फ़ैकल्टी की ज़रूरत होती है, जबकि अख़बार के हवाले से ही छापी गई ख़बर में कॉलेज ने केवल 3 डॉक्टर के नाम दिए हैं।"
मोटी फ़ीस के बावजूद छात्र मूलभूत सुविधाओं से वंचित
यह आम बात है और हर कोई जानता है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज छात्रों से कितनी मोटी फ़ीस वसूली जाती है। इसको लेकर समय-समय पर कई मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने प्रदर्शन भी किया है। लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकलता क्योंकि ये सभी मेडिकल कॉलेज बहुत ही अमीर और ऊंची पहुँच वाले लोगों के होते हैं। झज्जर के इस कॉलेज में तीसरे वर्ष में पढ़ने वाले नीरज ने कहा, "कॉलेज की भारी-भरकम फ़ीस देकर और इतनी लंबी लड़ाई लड़कर हमारे घरवालों का सब कुछ दांव पर लग गया है इसलिए थक हार कर अब हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है जिसके चलते हम इच्छा मृत्यु चाहते हैं।"
एक अन्य छात्र विकास ने कहा, “हम 3 सालों में लगभग 30 लाख रुपए दे चुके हैं। इसके बावजूद हमें नहीं पता हमारा क्या होगा। हमारे पास और कोई रास्ता नहीं बचा है। अब आप ही बताएँ हम अपनी जान क्यों न दें?”
छात्रों ने अपील की है और कहा है कि हम इस समाज से और इस देश से माफ़ी चाहते हैं, और हम राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री से और तमाम समाज से इच्छा मृत्यु की गुहार करते हैं।
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छात्रों की ऐसी अपील हमारी सरकारों और व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जिन को समाज का इलाज करना था, और लोगों की ज़िंदगी बचानी थी, वो आज ख़ुद के लिए मौत मांग रहे हैं, लेकिन सवाल है क्यों? और इसका जबाब कोई नहीं दे रहा है!
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