झारखंड: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन सत्याग्रह जारी, संकल्प दिवस में शामिल हुए राकेश टिकैत
बमुश्किल दोपहर होने को थी और गर्मी का पारा भी मौसम अनुरूप ही था… जंगल में खिले पलाश के फूलों की लालिमा भी वातावरण को सुर्ख बना रही थी। तभी प्रकृति की नैसर्गिक सुन्दरता से भरा पूरा होने के कारण ‘मिनी कश्मीर’ (ठंढ प्रदेश) कहे जानेवाले नेतरहाट की वादी में बसे टुटुवापानी का इलाका हजारों कंठों से उद्घोषित नारों से सरगर्म हो उठा।
“नेतरहाट फ़ील्ड फायरिंग रेंज रद्द करो, जान देंगे ज़मीन नहीं देंगे, जन जन का ये नारा है- जंगल ज़मीन हमारा है, विकास के नाम पर विस्थापन बंद करो, आदिवासियों का विस्थापन बंद करो, हमारे पूर्वजों की ज़मीन मत लूटो, आदिवासियों को उजाड़ना बंद करो, आवाज़ दो हम एक हैं!”
कार्यक्रम था विगत तीन दशकों से सरकार द्वारा घोषित नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज परियोजना को रद्द करने की मांग को लेकर ‘केन्द्रीय जन संघर्ष समिति’ के आह्वान पर प्रत्येक वर्ष 22 एवं 23 मार्च को आयोजित ‘विरोध एवं संकल्प दिवस’। जिसके तहत इस बार भी 22 मार्च को क्षेत्र के हजारों लोगों ने विगत तीन दशको से जारी ‘नेतरहाट फ़ील्ड फायरिंग रेंज’ विरोधी सत्याग्रह-संघर्ष की एकजुटता को बढ़ाने व उसमें नयी उर्जा भरने के लिए अपनी समर्पित सक्रीय उपस्थिति दर्ज की।
हमेशा की भांति सुबह से ही लोगों का जुटान जारी था। नेतरहाट की वादी में फैले सुदूर दुर्गम पठारी इलाकों से जत्थों के रूप में पैदल और कई इलाकों से सामूहिक चंदे से भाड़ा गाड़ियों में भरकर लोग यहाँ पहुँच रहे थे। हालाँकि कुछ जत्थे एक दिन पहले ही शाम में यहाँ पहुँच गए थे। जिनके ठहरने की व्यवस्था कार्यक्रम के आयोजकों ने पहले से ही कर रखी थी। सो यहाँ पहले से ठहरे हुए सभी लोग अपने पारम्परिक आदिवासी परिधानों में जुलूस बनाकर कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे। दोपहर होते-होते इलाके के सभी आदिवासी गावों के बच्चे-बूढों-युवा से लेकर हर आयु वर्ग के स्त्री-पुरुषों के इस जुटान में इस बार सरगर्मी कुछ अधिक ही थी। क्योंकि पहली बार उनके आन्दोलन में शामिल होने देश के चर्चित किसान आन्दोलन का अत्यंत लोकप्रिय चेहरा किसान नेता राकेश टिकैत भी वहां आ रहे थे। जिन्हें लेकर युवाओं में कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिख रही थी। क्योंकि अभी तक उन्होंने राकेश टिकैत जी को सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी में ही दूर से देखा और सुना था।
‘नेतरहाट फ़ील्ड फायरिंग रेंज’ विरोधी आन्दोलनकारी संगठन ‘केन्द्रीय जन संघर्ष समिति’ द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘विरोध एवं संकल्प दिवस’ के प्रथम दिन 22 मार्च को आयोजित जनसभा कार्यक्रम की शुरुआत राकेश टिकैत एवं झारखण्ड विधान सभा में आदिवासी-मूलवासी व जन मुद्दों की बुलंद आवाज़ कहे जाने वाले भाकपा माले विधायक विनोद सिंह समेत सभी विशिष्ट मेहमानों का स्वागत ‘झारखंडी पगड़ी’ पहनाकर किया गया।
सभा को संबोधित करते हुए टिकैत जी ने अपने जोशपूर्ण अंदाज़ में कहा- 2022 विचारों के आदान प्रदान का वर्ष है। देश में गरीब मजदूर किसान जहां भी आन्दोलन करेंगे, हमारा उनको भरपूर समर्थन मिलेगा। नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज विरोधी आन्दोलन का समर्थन करते हुए कहा कि आन्दोलन आदमी से नहीं विचारधारा से चलता है। इस आन्दोलन की शुरुआत करनेवाले कई लोग आज जीवित नहीं होंगे लेकिन इसके बाद भी आन्दोलन मजबूती से चल रहा है। ऐसे आन्दोलनों में युवाओं को आगे आना होगा। अपने वक्तव्य में उन्होंने आदिवासी विस्थापन का विरोध करते हुए जोर देकर कहा कि- सरकार ज़मीन लेने की बजाय शिक्षा पर जोर देने का काम करें तो समाज एवं देश की प्रगति होगी। नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज से विस्थापित होने वाले 245 गावों के लोग कहाँ जायेंगे, यह काफी गंभीर विषय है।
भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने कहा कि झारखण्ड विधान सभा के पिछले सत्र में 20 दिसम्बर को हमने प्रदेश की सरकार से पूछा था कि बिहार सरकार की अधिसूचना संख्या 1862 के तहत दिनांक 20.08.1999 के अनुसार ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज’ का उक्त क्षेत्र के ग्रामीण लगातार विरोध कर रहें हैं। हमने यह भी पूछा कि- यह पूरा इलाका इको सेंसेटिव क्षेत्र घोषित है और 11 मई 2022 को समाप्त हो रहे समयावधी विस्तार पर रोक लगाने के लिए सरकार क्या सोचती है? तो इस सवाल पर सरकार ने बताया कि इस सम्बन्ध में विभाग की ओर से अब तक कोई प्रस्ताव नहीं प्राप्त हुआ है। जन सभा को आश्वस्त करते हुए माले विधायक ने यह भी कहा कि जब तक फायरिंग रेंज की समयावधि विस्तार पर हेमंत सोरेन सरकार रोक नहीं लगाती है तब तक आन्दोलन जारी रहेगा। कार्यक्रम में चर्चित आन्दोलनकारी दयामनी बारला समेत कई आन्दोलनकारी जन संगठनों के प्रतिनिधि भी भाग ले रहें हैं।
सनद रहे कि 22 मार्च 1994 के दिन इसी टुटुवापानी में जब तत्कालीन बिहार की सरकार द्वारा भारतीय सेना के ‘तोपखाना अभ्यास’ हेतु नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज परिजोजना की घोषणा उपरांत जब सेना की तोपखाना गाड़ियां यहाँ पहुँचीं थीं तो हजारों आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण महिला-पुरुष उन गाड़ियों के आगे लेट गए थे। ‘जान देंगे-ज़मीन नहीं देंगे, फौजी भाइयों वापस जाओ जैसे नारे लगते हुए लोगों ने सत्याग्रह-प्रतिवाद किया था। बाद में सेना के जवान वापस हो गए थे। उस दिन से ही नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज परियोजना को रद्द करने की मांग को लेकर क्षेत्र के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के लोगों द्वारा हर वर्ष 22 व 23 मार्च को ‘विरोध व संकल्प दिवस’ मनाया जाता है।
नेतरहाट फ़ील्ड फायरिंग रेंज विरोधी आन्दोलन के संचालक केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के अगुवा युवा आदिवासी एक्टिविस्ट जेरोम जेराल्ड कुजूर के अनुसार ‘ मैनुवर्ष फील्ड फायरिंग एंड आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट के पठार में 1964 से 1994 तक हर साल सेना यहाँ तोपाभ्यास करती आ रही है। हर तोपाभ्यास के दौरान जंगलों के वन्यप्राणी व वहाँ जाने आने वालों से लेकर वहां बसे कई गावों में तोप के गोलों से काफी नुकसान होता रहा है। सेना के जवानों द्वारा आदिवासी महिलाओं से छेड़खानी व बलात्कार की भी घटनाएं हुईं। प्रकृति का शांत और स्वच्छ वातावरण हमेशा बारूदी गंधों से विषाक्त होता रहा। आखिरकार लोगों ने प्रतिवाद करना शुरू कर दिया और फायरिंग रेंज रद्द करने की मांगें उठने लगी। लेकिन क्षेत्र के निवासियों की मांगों को अनसुना करते हुए 1991 में तत्कालीन बिहार सरकार ने अधिसूचना जारी कर फायरिंग क्षेत्र का विस्तार करते हुए 1471 वर्ग किलोमीटर को तोपखाना अभ्यास के लिए अधिसूचित क्षेत्र घोषित कर दिया। जिसके तहत इस इलाके के 245 गांवों को अधिसूचित किये जाने से 2,50,000 की आबादी पर सीधे विस्थापित होने का ख़तरा मंडराने लगा। इतना ही नहीं तत्कालीन सरकार ने 1999 में ही फायरिंग रेंज समयावधि की अधिसूचना समाप्ति के पूर्व ही अवधी में विस्तार देते हुए 11 मई 2002 से 11 मई 2022 तक की घोषणा कर दी।
कैसी भयावह विडंबना है कि ‘जलवायु और पर्यवरण बचाओ’ का नारा देने वाली सरकारें जो हर साल अपने विज्ञापनी प्रचार में जनता के खजाने से करोड़ों करोड़ रुपये उड़ाकर पर्यावरण और जंगलों को बचाने का ढोंग रचती हैं, तो दूसरी ओर, अपार प्राकृतिक संसाधनों और सौन्दर्य से भरे-पूरे नेतरहाट जिससे मनोरम इलाके को तोपों के गोलों के बारूदी गंधों में डुबोने पर आमादा हैं। साथ ही पीढ़ियों से बसे इस क्षेत्र के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के लोगों को जीते जी विस्थापित कर उजाड़ने को ‘विकास’ बताती हैं।
विडंबना यह भी है कि झारखण्ड राज्य गठन उपरांत भी यहाँ की सरकारों ने भी फायरिंग रेंज परियोजना को रद्द नहीं किया। 4 मई 2017 को पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ( वर्तमान भाजपा विधयक दल नेता) व वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (तत्कालीन विपक्ष नेता) समेत कई कद्दावर नेतागण जन संघर्ष समिति के मंच से फायरिंग रेंज परियोजना रद्द कराने का संकल्प लिया था। लेकिन आज तक न तो इनमें से किसी ने भी अपने संकल्प पर अमल किया और ना ही विस्थापन का दंश झेल रहे इस क्षेत्र के आदिवासी-मूलवासियों की कोई सुध ली है। बावजूद इसके हर चुनाव में फायरिंग रेंज वापसी के वायदे पर लोगों के वोट झटक ही लिए जाते हैं। देखना है ‘जान देंगे ज़मीन नहीं देंगे’ का जारी जन सत्याग्रह कब तक सरकारों के संज्ञान में आता है!
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