कश्मीरः पुलिस हिरासत में इमरान बशीर गनाइ की हत्या
ऐसा लगता है कि कश्मीर में मुठभेड़ हत्याओं का नया पैटर्न/तरीक़ा उभरने वाला है। वह है, ‘आतंकवादी’ बताकर गिरफ़्तार किये गये किसी कश्मीरी नौजवान की किसी अन्य तथाकथित आतंकवादी की गोली से हत्या। और यह प्रचारित करना कि उसे पुलिस/सेना ने नहीं मारा।
यानी, जो व्यक्ति पुलिस हिरासत में है, जो सुरक्षा बलों की तगड़ी घेराबंदी में है, उसे किसी अन्य व्यक्ति ने गोली चलाकर मार डाला! ऐसा कश्मीर पुलिस का कहना है। क्या इस पर विश्वास किया जा सकता है?
18-19 साल के कश्मीरी नौजवान इमरान बशीर गनाइ के साथ यही हुआ। उसे 19 अक्टूुबर 2022 को कश्मीर के शोपियां ज़िले में तब मार डाला गया, जब वह गिरफ़्तार होकर पुलिस हिरासत में था।
कश्मीर पुलिस के अनुसार, गिरफ़्तार किये गये इमरान बशीर गनाइ को ‘मुठभेड़’ के दौरान कुछ अन्य तथाकथित आतंकवादियों ने गोली चलाकर मार डाला।
यह मुठभेड़ हत्या गंभीर सवालों के घेरे में है। कश्मीर की घटनाओं पर नज़र रखनेवालों का कहना है कि पिछले 20-30 सालों में भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों ने कश्मीर में जो ‘फटाफट न्याय प्रणाली’ विकसित की है, यह उसी का रूप है।
इमरान बशीर गनाइ को कश्मीर पुलिस ने ‘आतंकवादी’ बताकर 18 अक्टूबर 2022 को गिरफ़्तार किया। उस पर आरोप था कि उसने 17 अक्टूबर 2022 को शोपियां में बम मारकर दो मज़दूरों की हत्या कर दी। सिर्फ़ आरोप ही था—न सबूत या प्रमाण, न जांच-पड़ताल, न अदालती कार्रवाई। और ‘फटाफट न्याय’ कर दिया गया—गिरफ़्तार किये जाने के दूसरे ही दिन, 19 अक्टूबर को, पुलिस हिरासत में गनाइ की हत्या कर दी गयी। और बताया गया कि उसे अन्य ‘आतंकवादियों’ ने गोली मार दी!
कश्मीर में घटनाएं पहले से तैयार पटकथा के मुताबिक बड़ी तेजी से आगे बढ़ती हैं!
इस हत्या पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की भूतपूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में सेना व अन्य सुरक्षा बलों के हाथों नागरिकों की हत्याओं को उचित ठहराने का आम चलन हो गया है।
महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि इन हत्याओं को जायज ठहराने के लिए सेना कभी ‘मुठभेड़’ शब्द का इस्तेमाल करती है, कभी कहती है कि उसने ‘हाइब्रिड (hybrid) आतंकवादी’ को मार डाला।
पुलिस के अनुसार, ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ या ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ वे लोग हैं, जिनका लेखा-जोखा पुलिस के पास नहीं है, लेकिन जो किसी-न-किसी रूप में चरमपंथ (मिलिटेंसी) से जुड़े हैं।
पुलिस अपनी मर्जी से, जब चाहे, बिना ठोस जानकारी और सबूत के, किसी को भी ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ बता देती है, और फिर ‘फटाफट न्याय’ कर देती है। कश्मीर में नागरिकों की हत्याओं को जायज ठहराने के लिए कई तरीक़े इस्तेमाल किये जा रहे हैं।
इमरान बशीर गनाइ की हत्या को जायज ठहराने के लिए उसे ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ बताया गया था। सवाल है, क्या इस हत्या की जांच होगी?
(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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