राजस्थान: गहलोत सरकार ने क्यों रद्द किए छात्र संघ चुनाव? भूख हड़ताल कर रहे संगठन
जब सियासत का समागम होता है तब बलि हमेशा शिक्षा की दी जाती है, बलि छात्रों के अधिकारों की दी जाती है, और उन्हें उनका अधिकार दिलाने वाले ज़रियों की दी जाती है। इसी ढर्रे पर इन दिनों राजस्थान भी चल रहा है।
कैसे? दरअसल साल के आख़िर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ज़ाहिर है कांग्रेस अपनी सत्ता को दोहराने की कोशिश करेगी, ऐसे में निशाने पर आ गए हैं छात्र संगठन और छात्र संगठन चुनाव।
राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने इसी साल होने वाले छात्र संघ चुनावों पर रोक लगा दी है, और तर्क ये दिया हैं कि छात्रसंघ चुनावों में धनबल और बाहुबल का खुलकर इस्तेमाल हो रहा है, इसके अलावा सरकार ने लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का उल्लंघन होने की भी बात कही है। यदि चुनाव कराए जाते हैं तो पढ़ाई प्रभावित होगी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सेमेस्टर सिस्टम लागू नहीं हो पाएगा, इसलिए छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने का फैसला किया गया है।
सरकार ने अचानक अपना फैसला तो सुना दिया, लेकिन पिछले कई महीनों से छात्रसंघ चुनाव की तैयारी कर रहे छात्र संगठन इसके विरोध में खड़े हो गए हैं और विश्वविद्यालय से लेकर प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों में सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया।
छात्रसंघ चुनाव बहाल करने के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय में संपूर्ण छात्र शक्ति के साथ धरना देकर माननीय मुख्यमंत्री जी से छात्र संघ चुनाव बहाल करने की अपील की व जब तक मुख्यमंत्री जी छात्रसंघ चुनाव बहाल नहीं करते हैं हम धरने पर बैठे रहेंगे।@ashokgehlot51 @nsui pic.twitter.com/PYlzdc0joN
— Rahul Mahala (@RahulMahala_) August 13, 2023
ये छात्र राजस्थान विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कर रहे हैं। इनका कहना है कि जबतक छात्र संघ चुनाव बहाल नहीं हो जाते, तबतक वो उठेंगे नहीं।
एक तस्वीर और देख लीजिए..
#फिर बजे लठ!!#जयपुर-#राजस्थान_यूनिवर्सिटी : छात्र संघ चुनाव की मांग को लेकर आमने-सामने पुलिस और छात्र नेता..!!@dsrajpurohit291 pic.twitter.com/fKJZVzh6pA
— Doonger Singh (@dsrajpurohit291) August 11, 2023
यहां ये मालूम होता है कि छात्र जब अपनी मांगों को लेकर विश्वविद्यालय के बाहर प्रदर्शन करने के लिए गए तो पुलिस ने लाठियां भांजनी शुरू कर दीं।
कुछ छात्र संगठनों ने तो यहां तक कहा है कि जबतक चुनाव की बहाली नहीं होती है तब तक वे भूख हड़ताल पर बैठे रहेंगे।
सरकार द्वारा छात्रसंघ चुनाव बंद करने के विरोध में हम राजस्थान विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर बैठे हैं।जब तक सरकार यह फैंसला वापस नहीं लेती हैं,भुख हड़ताल पर रहूंगा।आप अभी से निवेदन है छात्रहितों की इस लडाई में हमारा साथ दे। @RajCMO @ashokgehlot51 #छात्र_मांगे_छात्रसंघ_चुनाव pic.twitter.com/gqJxMBvQtH
— HARKESH CHHAWDI🇮🇳 (@harkeshchhawdi) August 14, 2023
ख़ैर...चुनाव रद्द होने के ख़िलाफ राजस्थान सरकार के अपने तर्क हो सकते हैं, जो छात्रों को दिए जा रहे हैं, लेकिन ये तर्क कितने सियासी हैं इसे समझना भी बहुत ज़रूरी है।
इसका सबसे पहला और बड़ा उदाहरण तो कांग्रेस समर्थित छात्र संगठन एनएसयूआई ही है,जिसने चुनाव रद्द हो जाने के खिलाफ गहलोत सरकार को निकम्मा तक करार दे दिया।
इसके अलावा पिछले कुछ सालों में एनएसयूआई का चुनावी प्रदर्शन भी कांग्रेस के लिए परेशानियां खड़ा कर सकता है। पिछले साल हुए छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई का लगभग सफाया हो गया था। कुल 17 विश्वविद्यालयों में से 6 में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी के प्रत्याशी जीते थे। 9 विश्वविद्यालयों में निर्दलीय प्रत्याशी अध्यक्ष बने थे जबकि एनएसयूआई के प्रत्यशी सिर्फ 2 विश्वविद्यालयों में ही अध्यक्ष बने थे। अगर इस बार भी एनएसयूआई का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनता। सरकार के ख़िलाफ़ बनने वाले माहौल के चलते भी छात्रसंघ चुनावों को रद्द किया जाना माना जा रहा है।
दूसरी चीज़ एक संयोग भी है, जब-जब राजस्थान विश्वविद्यालय में एबीवीपी या निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत हुई। तब-तब कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। साल 2003 के छात्रसंघ चुनावों में राजस्थान विश्वविद्यालय में एबीवीपी के जितेन्द्र मीणा अध्यक्ष बने। तब कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा को 120 सीटों पर जीत मिली थी। 2008 के छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी के कानाराम जाट राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। तब भी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और भाजपा को रिकॉर्ड 153 सीटें मिली थी। साल 2018 के छात्रसंघ चुनाव में जब निर्दलीय विनोद जाखड़ अध्यक्ष बने। तब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। 99 सीटें जीतने के बाद निर्दलीयों का सहारा लेकर कांग्रेस की सरकार बनी थी।
इसके अलावा एक कारण और भी है कि जिस पार्टी की सरकार रही है, अध्यक्ष उसके विपरीत ही चुनकर आया है, लिस्ट देखिए...
इस टेबल में साफ दिखाई पड़ता है, कि जिसकी सरकार रहती है, विश्वविद्यालय में अध्यक्ष उनकी समर्थित पार्टी के विपरीत ही होता है, या फिर निर्दलीय होता है, ऐसे में राजस्थान सरकार कोई रिस्क लेना नहीं चाहती, क्योंकि उसे मालूम है कि प्रदेश के 6 लाख से ज़्यादा छात्र-छात्राएं इस चुनाव में वोट करते हैं, ऐसे में अगर उनके समर्थित छात्र संगठन की जीत नहीं होती है, तो इन वोटरों के बीच ख़िलाफ छवि बनेगी और इसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है।
यानी ये कहा जा सकता है कि अपने एजेंडे साधने के लिए राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने साल 2005 का सहारा ज़रूर लिया होगा, तभी बाहुबल, भुज़बल और पैसे खर्चने की बात की जा रही है, दरअसल साल 2005 छात्रसंघ चुनाव के दौरान काफी हंगामा और हुड़दंग हुआ था, जिसके बाद हाईकोर्ट में पीआईएल दायर की गई थी। साल 2006 में कोर्ट ने छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी थी। इसके बाद साल 2010 में एक बार फिर छात्रसंघ चुनाव की शुरुआत हुई थी।
हालांकि, साल 2020 और 2021 में भी कोरोना संक्रमण की वजह से छात्रसंघ चुनाव नहीं हो पाए थे। लेकिन पिछले साल 29 जुलाई को एक बार फिर सरकार ने छात्रसंघ चुनाव कराने का फैसला किया था। इसके बाद प्रदेशभर में पिछले साल 26 अगस्त को वोटिंग, जबकि 27 अगस्त को काउंटिंग और रिजल्ट की प्रक्रिया पूरी की गई थी।
अब एक बार फिर छात्र संघ चुनावों पर रोक लगा दी गई है। वैसे आपको याद होगा कि पिछले साल जब हिमाचल प्रदेश के चुनाव हुए और कांग्रेस जीतकर सत्ता में वापस आई, तो उसका बड़ा कारण वहां छात्र संघ चुनाव बहाल करवाना था, क्योंकि वहां भी चुनाव बैन थे। तब न्यूज़क्लिक ने हिमाचल विश्वविद्यालय में छात्र संगठनों से बात की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस ने छात्र संघ बहाली का अपना वादा पूरा नहीं किया, तो हम आंदोलन करेंगे। इसी को लेकर हमने एक बार फिर एसएफआई के छात्र रमन से बात की, उनका कहना था कि कांग्रेस ने सरकार में आने से पहले वादा ज़रूर किया था, लेकिन अभी तक छात्र संघ चुनाव को लेकर कोई बयान नहीं दिया है, और न ही इस साल बहाल होनी की कोई उम्मीद नज़र आ रही है, हालांकि हम लोग चुनाव बहाली के लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं, और आगे भी करते रहेंगे।
इस दौरान कई छात्रों ने ये मुद्दा भी उठाया था कि जब देश और प्रदेश का प्रतिनिधि करने वाले नेता छात्र राजनीति से ही निकले हैं, तब हमें क्यों नहीं अपना अधिकार दे रहे हैं।
इसी तरह राजस्थान में भी छात्र इस मुद्दे को बढ़-चढ़कर उठा रहे हैं, और कह रहे हैं कि राजस्थान विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति ने न जाने कितने देशव्यापी नेता दिए, लेकिन अब जब हम अपने विश्वविद्यालय और छात्रों के लिए कुछ करना चाहते हैं, उन्हें उनका अधिकार दिलाना चाहते हैं, तो हमें वंचित रखा जा रहा है।
C.M साहब लोकतंत्र की हत्या न करो ।।
प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव होने दो ।।
.*गुलशन मीणा राजस्थान विश्वविद्यालय*@RajCMO @ashokgehlot51 @ABVP4RU @NSUIRU pic.twitter.com/5ERrUn7DX9— महेश बागड़ी (@Mahesh_Meena_Ru) August 14, 2023
सरकार की इस सियासत का विरोध करने को लेकर बहुत से छात्र गिरफ्तार भी किए जा चुके हैं, लेकिन वो पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वक्त में गहलोत सरकार छात्र संघ चुनाव के भविष्य को किस तरह से लिखती है? छात्रों की मांग मानती है या फिर अपने फैसले पर अड़ी रहती है।
हालांकि ये कहना भी ग़लत नहीं होगा कि गहलोत सरकार का छात्रों के लिए फैसला आने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी सरकार का भी भविष्य तय कर सकता है।
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