रामनवमी जुलूस : बिहार के सासाराम में भड़की हिंसा की क्या थी वजह?
सासाराम (बिहार)/नई दिल्ली: यास्मीन खातून के लिए 31 मार्च का दिन एक सामान्य तौर पर बिताया जाने वाला जुम्मा था। उसका पति जुम्मे की नमाज़ पर जाने से पहले स्नान कर रहा था। दोनों में से किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनका पड़ोस जल्द ही हिंसा के मैदान में बदल जाएगा, क्योंकि यहां का माहौल आमतौर पर सुखमय और शांतिपूर्ण था।
रिपोर्ट यह मिली कि, करीब 250-300 लोग कथित तौर पर रोहतास जिले के प्रशासनिक मुख्यालय सासाराम के शाह जलाल पीर इलाके में जामा मस्जिद के पास इकट्ठा हो गए हैं और ‘जय श्री राम’ नारे लगा रहे हैं। इबादत के बाद, मुस्लिम पक्ष ने कथित तौर पर "अल्लाहु अकबर" के जवाबी नारे लगाए।
कुछ स्थानीय निवासियों का कहना है कि दोनों पक्षों में जवाबी नारेबाजी की वजह से पथराव शुरू हो गया, और बड़ी मुस्लिम आबादी वाले शाह जलाल पीर के पड़ोस में बड़े पैमाने पर आगजनी और लूटपाट शुरू हो गई।
कुछ चश्मदीदों ने कहना है कि “मस्जिद के दूसरी तरफ नई बसी कॉलोनी कादिरगंज, सैफुल्लागंज आदि आसपास के इलाकों में "हथियारबंद लोगों" की संख्या कथित तौर पर अधिक थी।
चूंकि लगभग सभी पुरुष मस्जिद में नमाज अदा करने गए थे, चश्मदीदों ने कहा, दो मोर्चों का गठन किया गया जिसमें से एक मस्जिद की तरफ गया जबकि दूसरे ने कॉलोनी पर कब्जा कर लिया था। दोनों पक्षों के बीच 10-12 फीट कंक्रीट की सड़क का ही फांसला था।
यास्मीन ने अपनी दो बेटियों की शादी के लिए जो सोने-चांदी के आभूषण और कीमती पीतल के बर्तन रखे थे, उन्हें तथा साथ में उनकी 50,000 रुपये की नकद राशि को दंगाइयों ने लूट लिया। नए बने कमरों में तोड़फोड़ करने के बाद, कथित तौर पर दंगाइयों ने आग भी लगा दी थी।
यास्मीन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “दंगाइयों ने पहले कॉलोनी को घेरा और जब सभी पुरुष मस्जिद चले गए तो कॉलोनी में प्रवेश किया। हमारे घरों पर ईंट-पत्थर बरसाए, लूटापाट की तथा तोड़फोड़ की और अंतत आग लगा दी गई, लेकिन पुलिस ने हमें सुरक्षित बचा लिया।"
तबाही का अंदाज़ा लगाने के लिए पहले कमरे में झांकना ही काफी था। एक जली और टूटी हुई स्टील की अलमारी, जले हुए बर्तन, कपड़े और बिजली की फिटिंग दंगाइयों के आतंक की कहानी बयां कर रहे थे।
हालांकि पुलिस ने दावा किया है कि उसने हिंसा को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि दंगाइयों को प्रशासन घंटों तक नियंत्रित नहीं कर पाई थी। कुछ चश्मदीदों का कहना है कि, दंगाइयों के भीतर पुलिस-प्रशासन का कोई डर नहीं था, शायद इसलिए कि पुलिस "जानबूझकर दंगाइयों को नियंत्रित नहीं कर रही थी या उनका सामना करने में असहाय महसूस कर रही थी।"
यास्मीन ने कहा, "जब हमारे घरों को जलाया जा रहा था, तब पुलिसकर्मी-दंगाइयों को भगाने के बजाय - मूक दर्शक की तरह खड़े थे जैसे कि उनके साथ उनका कोई मौन गठबंधन था या वे उन्हें सुरक्षा देने के लिए वहां थे।"
प्रशासन का कोई भी अधिकारी पीड़ितों को हुए नुकसान का जायजा लेने नहीं आया। मुआवजे के बारे में पूछे जाने पर, बिहार सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "सरकार की नीति के अनुसार सभी नुकसानों की भरपाई की जाएगी।"
हालांकि, राज्य सरकार ने चार जिलों में हुई रामनवमी हिंसा के कारण पीड़ितों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए राज्य सरकार तरफ से किसी भी राशि की घोषणा नहीं की है।
राज्य सरकार और जिला प्रशासन को यास्मीन के सवाल का जवाब देना होगा: "हम अपने घर का पुनर्निर्माण कैसे करेंगे? हम कहां जाएंगे? हम अपनी दो बेटियों की शादी कैसे करेंगे, जिनकी शादी ईद के तुरंत बाद होनी है?"
यास्मीन का पति मजदूरी कर सात लोगों के परिवार का पेट पालता है। ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा ख़रीदना और उस पर घर बनाना (जो अभी भी अधूरा है) परिवार के लिए वर्षों का सबसे बड़े निवेश हैं।
यास्मीन के करीब शब्बन, पांच बच्चों की मां, अपने अधूरे तथा एक कमरे के नवनिर्मित घर में रहती है। उन्होंने कहा कि गुरुवार (30 मार्च) को रामनवमी जुलूस के दौरान दोनों ओर से टकराव और नारेबाजी के बावजूद कोई तनाव नहीं था।
"उन्होंने अगले दिन एक सुसंगठित और समन्वित तरीके से हम पर हमला किया," और घटनाओं के क्रम बताते हुए आरोप लगाया, जो उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन में घटी थीं।
"मैं बच्चों के लिए दोपहर का भोजन बना रही थी, अचानक मेरे घर के सामने 'जय श्री राम' के नारे लगाने वाले और और हमें गालियां देने वाले लोगों के एक समूह ने हमला कर दिया। मुझे कुछ समय बाद एहसास हुआ कि यह केवल मेरा घर ही नहीं बल्कि पूरा इलाका चारों ओर से घिरा हुआ था।" दंगाई, जो एक-एक करके मुस्लिम घरों पर हमला कर रहे थे। मैंने अपने दो पड़ोसियों के घरों को राख में तब्दील होते देखा। अब हमारी बारी थी। मैं किसी तरह बच्चों के साथ भागने में सफल रही।"
अगले दिन जब परिवार वापस लौटा तो हमारा स्टील का दरवाजा खुला था। उसमें बड़े-बड़े छेद थे। सभी कीमती सामान कथित तौर पर गायब था। जो कुछ बचा था वह फर्नीचर के टूटे टुकड़े, बिखरी किताबें आदि थे।
उसने कहा कि, "उन्होंने हमारे घर को भी जलाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहे क्योंकि यह आग नहीं पकड़ सका।" उनके पति, मुस्लिम कुरैशी, बकरियों का व्यापार करके जीविकोपार्जन करते हैं।
तीन बच्चों की मां सैयदा खातून की भी कुछ ऐसी ही कहानी थी। उन्होंने कहा कि भारी पथराव और हंगामा हुआ। उसे डर था कि दंगाई जल्द ही उसके घर को निशाना बना लेंगे, और उसने अपने बच्चों की जान और इज्जत बचाने को प्राथमिकता दी। उसकी 18 साल की एक बेटी है।
"मैंने सभी कमरों और मुख्य द्वार को बंद कर दिया और बचाव के लिए वहाँ से भाग निकले। हमलावरों ने सभी ताले तोड़ दिए और हमारे पास जो कुछ भी था उसे लूट लिया। वे सभी गहने, सिलाई मशीन और अन्य सामान ले गए जो हमने अपनी बेटी की शादी के लिए खरीदे थे।" उन्होंने 45,000 रुपये की नकद राशि भी लूट ली। दंगाइयों ने जिसे समान को ले जाने के लायक नहीं समझा उसे आग के हवाले कर दिया था।
ये सब शुरू कैसे हुआ?
30 मार्च को जब रामनवमी के जुलूस अपने निर्धारित मार्ग शिव घाट, जानी बाजार, मदार दरवाजा, शाह जुमा, शेरगंज, अड्डा, धर्मशाला, चौखंडी, चौक बाजार और हनुमान गढ़ी से गुजरे तो कोई हिंसक घटना नहीं घटी थी।
जब रैली शाह जुमा से गुजरी, तो चश्मदीदों ने दावा किया कि कुछ प्रतिभागियों ने कथित तौर वहाँ मौजूद मस्जिद के पास रुके और तेज आवाज़ में डीजे संगीत पर नृत्य करना शुरू कर दिया और आपत्तिजनक नारे लगाए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय के युवकों ने कथित तौर पर 'हमले' के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में नारेबाजी की।
इसी बीच पुलिस ने पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित किया। जब रैली आगे बढ़ी तो इसी तरह की घटना मदार दरवाजा पर हुई।
उन्होंने कहा कि, "वहां भी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। पुलिस ने दोनों पक्षों को शांत कराया और अंतत: जुलूस बिना किसी हिंसा की घटना के अपने गंतव्य पर पहुंच गया।"
अगले दिन (31 मार्च), राज्य भर में रामनवमी के जुलूसों पर कथित 'हमलों' के विरोध में बजरंग दल ने बंद का आह्वान किया था।
"मदर दरवाजा के मुस्लिम दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद करने से इनकार कर दिया। इससे स्थानीय बजरंग दल के कार्यकर्ता नाराज हो गए, जिन्होंने बंद में भाग लेने से इनकार करने वालों को सबक सिखाने के लिए नौरत्न बाजार और जानी बाजार के लोगों को संगठित किया।
कुछ स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया कि, "दोनों पक्ष कथित रूप से पथराव में शामिल थे। और पथराव लगभग तीन-चार घंटे तक चला।" फिर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने "मुस्लिम इलाकों की ओर कूच किया और लूटपाट की और संपत्तियों को नष्ट कर दिया"।
बिहारशरीफ की तुलना में सासाराम में जिला प्रशासन थोड़ा अधिक सतर्क था। इसने समय रहते हिंसा पर क़ाबू पा लिया और दंगाइयों को आज़ाद नहीं घूमने दिया, हालांकि कुछ इलाकों पर हमला हुआ, और वहां पुलिस की भूमिका अत्यधिक संदिग्ध लगी।
इस साल, राज्य भर में रामनवमी के जुलूसों में सबसे बड़ी भीड़ का उभरना एक आम विशेषता थी। जुलूसों के दौरान जमा हुई भारी भीड़ और हिंसा को 2024 के आम चुनाव और फिर राज्य में विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
न्यूज़क्लिक ने बिहारशरीफ और सासाराम के कई स्थानीय पत्रकारों से बात की जिन्होने बताया कि उन्होंने रामनवमी के जुलूसों में इतनी बड़ी भीड़ पहले कभी नहीं देखी थी।
"पिछले कुछ वर्षों से यहां जुलूस निकलते रहे हैं, लेकिन हमने रैली में लोगों की इतनी बड़ी भागीदारी कभी नहीं देखी। बिहारशरीफ में हिंसा बिल्कुल भी स्वतःस्फूर्त नहीं थी। यह गढ़ी गई हिंसा थी। नालंदा और बाहर के लोगों को इसके लिए लामबंद किया गया था।" नवादा के जिला मुख्यालय के एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि, अपराधियों ने "भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कमजोर होते वोट बैंक को मजबूत करने" के लिए इसे अंजाम दिया है।
उनसे सहमत होते हुए एक अन्य पत्रकार ने कहा कि दंगों से बीजेपी को फायदा होगा। सासाराम में भी पत्रकारों ने भी कहा कि इस साल रामनवमी के जुलूस में सामान्य से अधिक भीड़ थी।
उन्होंने कहा कि, "सासाराम में कुछ भी बड़ा नहीं हुआ, लेकिन नफ़रत को बढ़ावा देने और समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के लिए सोशल मीडिया पर मामूली झड़प को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।"
रामनवमी के जुलूस पारंपरिक रूप से राज्य में राजनीति के लिए इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। 2018 में औरंगाबाद, नालंदा, नवादा और शेखपुरा जिलों में भी जुलूसों के दौरान हिंसा भड़की थी।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।
Ram Navami Procession: What Led to Violence in Bihar’s Sasaram
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