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तिरछी नज़र: उनका नारा– रेप से घृणा करो, रेपिस्ट से नहीं

‘सरकार जी’ रेप से घृणा करते थे, रेपिस्ट से नहीं। रेपिस्ट को तो वे समय से पहले रिहा कर देते थे। अपनी पार्टी में पनाह देते थे। उनका फूल मालाओं से स्वागत होता था। 
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रेप या बलात्कार एक बेहद गंभीर और घृणित अपराध है, लेकिन जब राजनीति या सरकारें उसे प्रहसन में बदल दें, आपदा में अवसर खोजें तो फिर गंभीर आलेख की बजाय व्यंग्य के जरिए ही बात की जा सकती है। 

हमारे ‘सरकार जी’ रेप को लेकर बहुत ही व्यथित हैं। रेप अगर विपक्षी दल की सरकार वाले राज्य में हो तभी सरकार जी व्यथित होते हैं। यह उनका शासकीय कर्तव्य है। वैसे अपने दल द्वारा शासित राज्य में रेप हों तो सरकार जी के कान पर जूं भी नहीं रेंगती है। पर इस बार विपक्षी दल द्वारा शासित प्रदेश में रेप हुआ था तो सरकार जी के कान पर खूब सारी जूँएं रेंग रही थीं। 

रेप पूरे देश में होते हैं। हर राज्य में होते हैं। विपक्षी दलों की सरकार वाले राज्यों में भी होते हैं और सरकार जी के दल की सरकार वाले राज्यों में भी होते हैं। पर जब रेप सरकार जी के दल वाली सरकार के राज्य में होते हैं तो सरकार जी चुप लगा जाते हैं। पर इस बार सरकार जी चुप नहीं थे। सरकार जी के कान पर जूँएं रेंग रही थीं और उन जूँओं के रेंगने की सरसराहट अभी तक लगातार सरकार जी के कानों में गूँज रही थी।

सरकार जी के कान पर जूँ रेंग रही थी, उसकी सरसराहट लगातार कानों में गूँज रही थी, बेचैनी बढ़ती जा रही थी तो सरकार जी ने अपने सबसे प्रमुख मंत्री चाणक्य को बुलवा भेजा। सरकार जी रेप को बहुत बुरा मानते थे। जब कभी भी कहीं रेप होता था तो सरकार जी को बहुत बुरा लगता था। सरकार जी के मन में हमेशा ख्याल आता था कि हाय! वहाँ मैं क्यों न हुआ। काश, मैं वहाँ होता तो ऐसे होता, मैं वहाँ होता तो वैसे होता। रेप हुआ ही नहीं होता।

सरकार जी रेप के मामले में सिद्धांतवादी थे। उन्हें गाँधी जी का सिद्धांत, 'पाप से घृणा करो, पापी से नहीं' रेप के मामले में सरकार जी को बहुत ही प्रिय था। ईसा मसीह का सिद्धांत, 'हे ईश्वर! उन्हें माफ करना, वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं' भी रेपिस्ट के लिए सरकार जी की निगाह में सर्वोपरि था। सरकार जी इसलिए रेप से घृणा करते थे, रेपिस्ट से नहीं। रेपिस्ट को तो वे समय से पहले रिहा कर देते थे। अपनी पार्टी में पनाह देते थे। उनका फूल मालाओं से स्वागत होता था। रेपिस्ट को बार बार पेरोल देते थे। तो सरकार जी रेप से घृणा करते थे, रेपिस्ट से नहीं।

सरकार जी महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध थे। इतने प्रतिबद्ध थे कि जब वे छोटे सरकार जी होते थे तो सुरक्षा के लिए एक महिला की जासूसी तक करवा डाली थी। जब महिलाओं के खिलाफ कोई भी अत्याचार होता है तो सरकार जी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हैं। ऐसा वो बार बार करते हैं, हर बार करते हैं। और हर बार वह उनकी प्रतिबद्धता नारा बन कर रह जाती है। न्यूज़ पेपर की हैडलाइन बन कर रह जाती थी। जब प्रतिबद्धता में बाध्यता नहीं हो, नारा सिर्फ नारा बन कर रह जाए, तब परिणाम नहीं मिलता है। 

हाँ तो हम बात कर रहे थे कि सरकार जी ने अपने सबसे प्रमुख मंत्री चाणक्य को तलब किया। चाणक्य ने आते ही सरकार जी की चिंता का सबब समझ लिया। चाणक्य की यही बात सरकार जी को पसंद थी कि वह बिना बताये ही सरकार जी की मुश्किल समझ जाते थे और उसका हल ढूंढ निकाल लेते थे। आते ही चाणक्य बोले, 'यह तो कोई मुश्किल ही नहीं है सरकार कि जो इतनी चिंता की जाये और अपनी और दूसरों की रातों की नींद ख़राब की जाये। रेप की यह आपदा तो अवसर है सरकार'। 

'हम जानते हैं चाणक्य, कोई भी आपदा हमारे लिए अवसर ही होती है। हमने तो तुम्हें इसीलिए बुलाया है चाणक्य कि तुम यह बताओ कि रेप की इस आपदा को अधिक से अधिक सुअवसर में कैसे बदला जाए। इस आपदा का अधिक सदुपयोग कैसे किया जाए। हमने अगर इस रेप विपिदा का लाभ नहीं उठाया तो धिक्कार है मुझे और तुम्हें'। वैसे तो सरकार जी खुद भी अवसरवादी थे पर अवसरवादिता में चाणक्य कहीं आगे थे, यह बात सरकार जी ही नहीं, सभी मानते थे। 

किसी भी घटना का, भले ही वह दुर्घटना ही क्यों न हो, फायदा न उठाएं तो वो सरकार जी कैसे। वैसे सरकार जी रेप की घटना के लिए भी नेहरू को जिम्मेदार ठहरा सकते थे पर उनका उपकार कि उन्होंने नहीं ठहराया।

'यह तो बहुत आसान है सरकार। एक तो आप उस प्रदेश की सरकार की भत्सर्ना शुरू कर दीजिये। उस राज्य सरकार को गिराने का इससे सुनहरा अवसर फिर नहीं मिलेगा। और दूसरे, महिलाओं की सुरक्षा के लिए वक्तव्य जारी कर दीजिये। मैं वहाँ की सरकार को गिराने की कोशिश करता हूँ। इस रेप को हम ऐसे ही व्यर्थ नहीं जाने देंगें', चाणक्य ने सरकार जी को अश्वस्त किया।

अगले दिन ही सरकार जी ने प्रदेश की विपक्षी दल की सरकार की एक सौ बाइसवीं बार भत्सर्ना कर दी और कुल जमा, जब से सरकार जी बने हैं, एक सौ सत्तासीवीं बार महिलाओं की सुरक्षा के लिए मज़बूत कदम उठाने का प्रण लिया। एक बार फिर सरकार जी ने आपदा को अवसर में बदल दिया। रेप को रेप नहीं रहने दिया, अवसर बना लिया।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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