समलैंगिक विवाह को वैध करना नहीं है ‘विनाशकारी’ : समर्थक
सैंडी और अनिल समलैंगिक दंपति हैं जो पिछले 9 वर्षों से एक साथ हैं और अपनी कम्युनिटी के लिए एक एनजीओ चला रहे हैं। फ़ोटो साभार : स्पेशल अरेंजमेंट
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह देश में ‘तबाही’ या ‘बर्बादी’ ला सकते हैं। हालांकि समलैंगिक विवाह पक्ष के अधिवक्ता इसपर सख्त असहमती दर्ज कराते हैं। उनका कहना है कि विवाह के अधिकार की कमी, जो कि एक नागरिक अधिकार है, ने LGBTQIA+ व्यक्तियों के जीवन को गहराई से प्रभावित किया है, जिनमे अन्य बातों के अलावा कार्यस्थलों और चिकित्सा व्यवस्था में भेदभाव शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से संबंधित याचिकाओं को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है, जो 18 अप्रैल, 2023 से इस मामले की सुनवाई करेगी। इसी पृष्ठभूमि में LGBTQIA+ कम्युनिटी ये मुद्दा उठा रही है कि अनुच्छेद 377 को गैर अपराधिक घोषित किया गया है लेकिन बाबजूद इसके उन्हें अनेकों प्रकार की कठिनाईयां आ रही हैं।
सैंडी जो कि झारखंड के छोटे शहर बोकारो में पले-बढ़े हैं उनको अपनी सेक्सुअलिटी समझ नहीं आई जब तक कि वे आगे की पढ़ाई के लिए हैदराबाद नहीं गए। हैदराबाद में पढाई के दौरान उन्हें अपनी सेक्सुअलिटी की पहचान हुई।
सैंडी ने बताया, “मुझे हमेशा लगता था कि मैं अलग हूं। मुझे महसूस हुआ कि मैं अपनी क्लास के अन्य लड़कों की तरह लड़कियों के प्रति आकर्षित नहीं हूं। लड़के मेरे चलने के ढंग पर, मेरे बात करने के लहज़े और हर चीज़ का मज़ाक उड़ाते थे। मेरे सिर्फ दो दोस्त थे।” उन्होंने कहा कि यहां तक कि उनके रिश्तेदार भी उनको खास तरह से रहने और अन्य लड़कों की तरह से स्पोर्ट्स खेलने को कहते थे पर सैंडी को ये सब करना पसंद नहीं था।
सैंडी कहते हैं, “समलैंगिक विवाह को वैध करने को लेकर आज सरकार की तरफ से जो कुछ भी हो रहा है, जो भी टिप्पणियां की जा रही हैं, ये सब इसलिए है क्योंकि शिक्षा का अभाव है और किसी की सेक्सुअल ओरिएंटेशन के प्रति संवेदनशीलता की कमी है।”
समलैंगिक विवाह को वैध न करने का प्रभाव
वर्तमान में सैंडी हैदराबाद में रहते हैं और पिछले 9 वर्षों से अपने साथी अनिल के साथ रिलेशनशिप में हैं। दोनों LGBTQIA+ कम्युनिटी के लिए MOBBERA फाउंडेशन चलाते हैं। वे समलैंगिक दंपति को कानूनी, वित्तीय और अन्य सहायता जो भी ज़रूरी हो, उपलब्ध कराते हैं। दो साल पहले, उन्हें लगा कि वे पॉलिएमरस (मल्टिपल पार्टनर्स रखना) हैं और अब गौरव नाम के एक अन्य साथी के साथ हैं। इन तीनों में सिर्फ गौरव की मां ही उसका साथ देती हैं। सैंडी की मां इन संबंधों के बारे में हमेशा नकारात्मक हैं। एक ही शहर में रहने के बावजूद अनिल अपने परिवार से पूरी तरह अलग है।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सैंडी कहते हैं कि वे धर्मा प्रोडक्शन और यश राज की फिल्मों को देखते हुए बड़े हुए हैं। बचपन से ही उनका उन पर प्रभाव है और उन्होंने उस समय सोचा था कि वे भविष्य में शादी करेंगे। हालाँकि, लड़कों के प्रति उनके झुकाव को देखते हुए, जैसे-जैसे वह बड़े होते गए, उन्हें एहसास हुआ कि सरकार उनकी कम्युनिटी को स्वीकार करने के लिए भी तैयार नहीं थी, समलैंगिक विवाह तो एक दूर का सपना था।
अनिल ने महसूस किया कि वे विवाह के अलावा क्या-क्या खो रहे हैं। अनिल कहते हैं, “यह केवल एक संस्था के रूप में विवाह के बारे में नहीं है; यह हमें उससे कहीं आगे एक कम्युनिटी के रूप में वंचित करता है। हम कानूनी तौर पर बच्चा गोद नहीं ले सकते। संपत्ति नहीं खरीद सकते। मेडिकल अधिकार भी नहीं हैं। और यहां तक कि कथित बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भी समलिंगी साथी की स्वीकार्यता नहीं है। समय के साथ, दोनों ने अलग-अलग मौकों पर महसूस किया है कि इसकी कानूनी वैधता से क्या हो सकता है।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, अनिल ने अपने कार्यालय से एक उदाहरण दिया, “यह काम पर फैमिली डे था। चूंकि मैं अपने माता-पिता के साथ लंबे समय से बात नहीं कर रहा हूं इसलिए मैं अपने खुद के परिवार, अपने साथी सैंडी को अपने साथ कार्यालय ले गया। अधिकारियों ने देखा तो बोले कि आप अपने दोस्त को नहीं ला सकते आपके परिवार का कोई होना चाहिए। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश करी कि सैंडी मेरा साथी है पर वे बोले या तो पति-पत्नी या माता-पिता को ला सकते हैं।” वह कम्युनिटी के अन्य लोगों के साथ महसूस करते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां सिर्फ नाम मात्र के लिए प्रगतिशील हैं।
कार्पोरेट रूप में भी इस सेक्सुअलिटी को स्वीकार्यता नहीं है। समस्या की जड़ें गहरी हैं। अपार्टमेंट किराये पर लेने से लेकर मेडिकल साझा करने तक समलैंगिक दंपति को निराशा ही हाथ लगती है।
पिछले साल अनिल का एक्सीडेंट हो गया। सैंडी उसे अस्पताल ले गया। अस्पताल में उस से संबंध पूछा गया। अस्पताल वालों ने कहा कि उसके माता-पिता को बुलाया जाए। मेडिकल औपचारिकता के लिए सैंडी की उपस्थति काफी नहीं होगी। उन्होंने कहा, "बहुत समझाने पर भी उन्होंने मुझे अनिल के दोस्त के रूप में स्वीकार किया साथी के रूप में नही।"
हैदराबाद के कार्यालयों और सार्वजानिक स्थानों पर यह स्थिति बनी हुई है। हालांकि मुंबई में स्थिति थोड़ी बेहतर है। सेवियो गोमेज़ (23) एक वित्त एवं मार्केटिंग सेक्टर में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता है। जब स्कूल में, साथियों से, और कार्यस्थल पर पूर्वाग्रहों के बारे में पूछा गया, तो गोमेज़ ने कहा कि शुरुआत से ही, उन्हें अपने साथियों द्वारा और यहां तक कि कार्यस्थल पर भी स्वीकृति मिली।
वे आगे कहते हैं, “कॉलेज में कुछ लोग टिप्पणियां करते थे, लेकिन मेरा मानना है कि अन्य शहरों की तुलना में मुंबई में लोग इस बारे में ‘इंडायरेक्ट’ हैं। वे मेरे सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं करेंगे, पर पूरी तरह से स्वीकार्यता अभी भी एक सपना है। शादी के बारे में उनके पास भी दूसरों की तरह कहानियां हैं। वो कहते हैं कि वो शादी करना चाहते हैं पर वर्तमान स्थितियों में शादी करना मुश्किल लगता है।
मिथक, विरोधाभास और विरोध
ऐसे कई उदाहरण हैं जहां समलैंगिकों को कानूनी तौर पर समस्याओं का सामना करना पड़ा। हालांकि जब वे कानूनी लड़ाई लड़ते हैं तो कुछ लोग कोर्ट के बाहर उनका विरोध करते हैं। जब याचिका पर सुनवाई हो रही थी तो सुप्रीम कोर्ट के सामने हिंदू यूनाइटेड फ्रंट के लोग विरोध करते हुए कह रहे थे कि समलैंगिक विवाह हिंदू संस्कृति का हिस्सा नहीं है। वे आग्रह कर रहे थे कि कोर्ट इस मामले पर सुनवाई न करे। यह सिर्फ आम लोगों का ही समूह नहीं था बल्कि उनमे से ज़्यादातर वकील थे।
गोमेज़ ने कहा, “यह सब छल-कपट भरा पाखंड है। जब मैं ऐसे लोगों को देखता हूं जो हिंदू संस्कृति के नाम पर विरोध करते हैं तब मुझे लगता है कि ये संस्कृति को नहीं जानते हैं। बहुत से देवताओं को जो अब पुरुष देवता के रूप में दिखाते हैं उन्हें पहले स्त्री के वेश में दिखाया गया है। इतना ही नहीं, नियमित पूजा करने वालों को भी शास्त्रों में किन्नर बताया गया है। सच्चाई तो यह है है कि इस धर्म ने ही इस कम्युनिटी को सबसे पहले इस पहचान के रूप में चिन्हित किया।”
केंद्र सरकार जो इसमें प्रतिवादी है ने हाल ही में अपने एफिडेविट में समलैंगिक विवाह को 'विनाशकारी' बताया है। यह कहा गया है कि यह, विवाह-संस्था के ख़िलाफ़ जाएगा और कहा है कि कोर्ट इस में हस्तक्षेप न करें, संसद में इस मामले को देख लिया जाएगा।
इस पर टिप्पणी करते हुए सैंडी कहते हैं, “उन्होंने कई जगह खुद का ही विरोध किया है। जहां तक संस्कृति की बात है लोग नहीं चाहते कि उनके बच्चे शादी से पहले सेक्स करें। LGBTQUIA+ कम्युनिटी के मामले में, ज़ाहिर तौर पर, चीज़ों ने अलग तरीके से काम किया है। हमारी कम्युनिटी के मामले में अनुच्छेद 377 के तहत यौन संबंधो को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है लेकिन हमारे लिए शादी करना ठीक नहीं है, आख़िर क्यों?”
लंबी लड़ाई : कुछ उम्मीदें, कुछ हार
LGBTQIA+ कम्युनिटी के कपल्स और व्यक्तियों, जिनसे न्यूज़क्लिक ने बात की, ने भी ऐसा ही विचार प्रस्तुत किया। वे सहमत थे कि उनके लिए कुछ भी आसान नहीं था, और लड़ाई लंबी हो गई। कम्युनिटी यह भी उम्मीद नहीं करती है कि सरकार या समाज तत्काल संवेदनशील हो जाएगा, लेकिन उनकी शादी को वैध बनाने से उनके जीवन पर भारी प्रभाव पड़ सकता है।
MOBBERA फाउंडेशन, एक एनजीओ जिसे अनिल और सैंडी चलाते हैं, का अनुभव है कि किस तरह शादी को वैधता न देना इस कम्युनिटी पर कितना गहरा प्रभाव डालता है।
सैंडी कहते हैं कि, “चार साल पहले हमारा एक करीबी दोस्त अपने घर गया। जब वह लौटा तो हालात बदल चुके थे। उसकी मां बहुत बीमार हो गई थीं। उसने अपने परिवार में सबको अपनी सेक्सुअलिटी के बारे में बता दिया था। उसकी दो बहनों के छोड़कर परिवार में किसी ने उसे स्वीकार नहीं किया।” वे आगे बताते हैं कि किस तरह उसकी बीमार मां ने कसम देकर उसकी एक महिला से शादी करवाई। उसने धमकी दी कि यदि उसके बेटे ने शादी नहीं की तो वह जान दे देगी। आखिरकार कोई विकल्प न देख कर दबाब में उसे शादी करने को मजबूर होना पड़ा। आज उसका एक बच्चा भी है और वह बहुत खराब मानसिक स्थिति में है।
ऐसा कई कपल्स के साथ हुआ है, जिन्हें अंततः पारिवारिक दबाव और कानूनी मान्यता की कमी के कारण अलग होना पड़ा। दूसरों को एक अलग रास्ता चुनने के लिए मजबूर किया जाता है। एक साल पहले, एक समलैंगिक महिला सैंडी और अनिल के पास पहुंची और कहा कि वह शादी करने के लिए एक समलैंगिक पुरुष की तलाश कर रही है। वह ऐसा चाहती थी क्योंकि तब परिवार प्रतीत होने वाले विषमलैंगिक विवाह के साथ शांति स्थापित होगी, और वे अपने जीवन को अपनी इच्छानुसार जी सकेंगे। कुछ के लिए, यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे जीतना ज़रूरी है।
सैंडी कहते हैं कि, "जब अनुच्छेद 377 अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया तब हमारे पास बहुत से फोन कॉल आए। ये कॉल केवल हमारी कम्युनिटी से नहीं थे बल्कि माता-पिता भी हम से संपर्क कर रहे थे कि वे जागरूकता कार्यक्रम में भाग लेना चाहते हैं और अपने बच्चों को समझना चाहते हैं। वह आगे कहते हैं कि चार साल पहले हुई यह जीत ही वजह है कि समलैंगिक विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
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