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तमिलनाडु : दो दलित युवाओं की हत्या के बाद, ग्रामीणों ने कहा कि बस ‘अब बहुत हुआ’

दलित गांवों के निवासियों ने समुदाय के दो युवाओं की हत्या के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया और सुनिश्चित किया कि इस जघन्य अपराध के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज हो और साथ ही मृतकों के परिवारों को मुआवज़ा मिले।
तमिलनाडु

तमिलनाडु के रानीपेट जिले के सोगनूर गाँव में अर्जुनन (26 वर्ष) और सेम्बेदु गाँव के सूर्या  (26 वर्ष) नामक दो दलित व्यक्तियों की 7 अप्रैल को निर्मम हत्या कर दी गई थी- इस घटना से दोनों गाँव गहरे शोक में हैं। 

गाँव वालों का कहना है कि उन्हें रोजगार और शिक्षा के लिए वन्नियार बहुल गाँव पेरुमलराजपेट से होकर गुजरना पड़ता है और इसकी वजह से उन्हे रास्ते भर रोज़ाना जातिगत अत्याचारों या अपमान का सामना करना पड़ता हैं। हालांकि, गाँव वालों का मानना है कि इस तरह की सुनियोजित हत्या की किसी ने उम्मीद नहीं की थी। 

अर्जुनन के अंतिम संस्कार के दौरान मृतक के परिवार के एक करीबी सदस्य ने न्यूज़क्लिक को बताया, “यहां जातिगत अत्याचार से संबंधित क्रूर घटनाएं रोजाना घटती हैं, लेकिन हमने पहले इस तरह की हत्याओं जैसा तांडव नहीं देखा है। उच्च जाति के लोगों ने अतीत में हमसे मार-पिटाइयाँ की हैं, लेकिन इस तरह की जघन्य हत्या दिल दहला देने वाली है।

अंतिम संस्कार के दौरान कुछ लोगों ने दावा किया कि दलित लोगों ने इलाके में रेत माफिया का विरोध किया था और इसलिए  वन्नियार समुदाय के लोगों ने उन्हे निशाना बनाया है। 

हालांकि, हमले में बच गए लोगों की शिकायत सुन कर पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज कर ली है जिसमें यह भी लिखा गया है कि पेरुमलराजपेट के कुछ युवाओं ने शिकायत की थी कि कुछ दलित लड़कों ने उनका अपमान किया था, जिसकी वजह से हिंसा भड़क गई।

दर्ज़ रिपोर्ट के अनुसार सौंदराजन (मृतक सूर्या के भाई) ने बताया कि वे, मृतक और उनका एक रिश्तेदार अय्यप्पन 7 अप्रैल की शाम 7:30 बजे के आसपास गुरुवरजापेट बाजार से एक दोपहिया वाहन पर गुजर रहे थे। अय्यप्पन ने कथित तौर पर अपने कुछ दोस्तों को देखा और उन्हें बाहर बुलाया। वन्नियार समुदाय के वहाँ खड़े तीन युवाओं - सुरेंदर, अजित और माधन ने समझा कि अयप्पन उन्हें गलत ढंग से संबोधित करके बुला रहा है और उन्होने दोनों लड़कों पर तुरंत हमला कर दिया। 

जिन दो युवाओं पर हमला हुआ और उनके साथ मौजदु तीन साथियों (कुल पाँच साथी) ने  अचानक हमले पर सवाल उठाए तो उन पर भी हथियारों से हमला बोल दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि अपराधियों ने छुरा घोंपते वक़्त गंदी-गंदी जातिगत गालियां भी दी थी। 

जघन्य हत्याओं के ख़िलाफ़ पनपा विरोध 

जब इन जघन्य हत्याओं के बारे में दोनों दलित गांवों में खबर फैली तो गाँव के निवासियों ने  जमकर विरोध प्रदर्शन किए और पुलिस से तुरंत एफआईआर दर्ज करने की मांग की।

जब 8 अप्रैल को सुबह 4:30 बजे, एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत प्राथमिकी दर्ज कर ली गई तो गुस्साए ग्रामीणों ने हत्यारों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग को लेकर सोगनूर के पास मुख्य सड़क को जाम कर दिया।

अगले दिन, 9 अप्रैल को, हत्या में शामिल छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। 

मैरी, जोकि महिला अधिकार समूह तमिलनाडु पेंगल इनेप्पु कुझु की सदस्य और पड़ोस में रहती हैं ने बताया, "अन्य समुदायों के मामले में पुलिस हमेशा तुरंत कार्रवाई करती है। लेकिन दलितों के मामले में वे नैतिकता का ढोंग रचते हैं।

समुदाय के दबाव के चलते मृतकों के परिवारों को 4,12,500 रुपए का मुजावज़ा सुनिश्चित किया गया है। मृतक अर्जुनन का एक बेटा है और वह केवल नौ महीने का है, जबकि सूर्या की पत्नी चार महीने की गर्भवती है।

सोगनूर गाँव का एक व्यक्ति, जहाँ अर्जुनन रहता था, ने बताया, कि उनके पास सरकार की तरफ से कोई नहीं आया है। चार दिनों के बाद, केवल जिला राजस्व अधिकारी (DRO) आए हैं। जबकि अन्य समुदायों के मामले में वे 24 घंटे के भीतर कार्रवाई कर देते हैं। क्योंकि हम दलित हैं, इसलिए उन्हें चार दिन लगे कार्यवाही करने में, वह भी इतने विरोध और दबाव के बाद। 

डीआरओ के आश्वासन देने के बाद ही, अर्जुनन और सूर्या के परिवारों ने 10 अप्रैल को लाशों को स्वीकार किया था।

इस बीच, सोघनूर गाँव की एक बुजुर्ग महिला ने आरोप लगाया, "मैंने सुना है कि हत्यारों के परिवारों ने पुलिस को 50 लाख रुपये दिए हैं। जबकि हम दबाव डालते रहे, लेकिन उसका इन पर कोई असर नहीं हुआ।

डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई), अराकोणम इलाके के एक नेता दिवाकर ने कहा कि, “हत्या होने के बाद से इन गांवों में सैकड़ों पुलिसकर्मियों की तैनाती कर दी गई थी, लेकिन गाँव वालो ने पुलिस से गाँव छोड़ने का अनुरोध किया किया क्योंकि उन्हे डर था कि पुलिस किसी न किसी बहाने उन पर कोई न कोई आरोप घड़ेगी। गाँव वालों ने आश्वासन दिया कि वे कोई परेशानी खड़ी नहीं करेंगे और न ही बदला लेने पर विचार करेंगे।

 ‘हम शांति चाहते हैं

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अपने गाँव में दलित महिलाओं की दशा पर टिप्पणी करते हुए, मैरी ने कहा कि, “हम महिलाओं, की खासकर पेरुमलराजपेट गाँव को पार करते समय कोई सुरक्षा नहीं है। हमारे सामने मुख्य सड़क का इस्तेमाल करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है, जोकि पेरुमलराजपेट गांव से होकर गुजरती है। कुछ महिलाएं दूसरी शिफ्ट में काम करती हैं और रात 1 बजे तक लौटती हैं, और वन्नियार समुदाय के लोग दोपहिया वाहनों पर सवार हमारा पीछा करते हैं और दुर्व्यवहार करते हैं।

उन्होंने कहा, “हम डर के साये में जीते हैं। इसे बदलना होगा। भविष्य में इस तरह की हिंसा को रोकने का काम किया जाना चाहिए।

एक अन्य महिला ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम सभी को रोजगार के लिए पेरुमलराजपेट से गुजरना पड़ता है। हमारे गाँव के पुरुष ड्राइवरी का काम करते हैं और वे रात में 12 या 1 बजे तक घर लौटते हैं। हम अपनी जिंदगी में डर कर जीते हैं। हमारे पास पैसा नहीं है, ताक़त या राजनीतिक संबंध नहीं है। हमारे गाँव में कोई वकील या सरकारी कर्मचारी भी नहीं हैं।

 “हत्यारों को सज़ा मिलनी चाहिए। किसी को भी हमें नीचा बताकर हमारे साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। यह सज़ा सभी के लिए एक सबक होनी चाहिए। 

दोनों दलित गांवों के कई लोगों ने कहा कि उन्हें बदला लेने और कुछ वन्नियार लोगों की हत्या करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा, लेकिन उन्होंने ऐसे किसी रास्ते पर चलने से मना किया है।

 “ऐसा नहीं है कि हम नहीं जानते कि कैसे बदला लिया जाता है। महिलाओं ने पुरुषों से मामले हवा न देने की दुहाई दी। हमने दो जिंदगियां खो दी हैं, जो अपने आप में बहुत खराब लग रहा है। हमें युवा पीढ़ी की परवाह करनी चाहिए,”अर्जुनन की भाभी ने न्यूज़क्लिक को बताया। 

राजनीतिक मोर्चा 

हत्याओं को एक राजनीतिक मोड़ देने की कोशिश भी की गई। हत्याओं के तुरंत बाद, विदुतलाई चिरुथिगाल काची (वीसीके) के प्रमुख नेता थोल थिरुमावलवम ने हत्याओं के लिए वन्नियार पार्टी पट्टली मक्कल काची की तरफ उंगली उठाईं। उन्होंने पीएमके पर मतदान समाप्त होते ही हिंसा भड़काने का आरोप लगाया और कहा, "जाति की कट्टरता डीएमके के नेतृत्व वाले सेक्युलर प्रोग्रेसिव एलायंस की जीत को बर्दाश्त करने में असमर्थ नज़र आ रही है, जिस मोर्चे में वीसीके भी शामिल है।" तमिलनाडु की इस पार्टी यानि वीसीके का लक्ष्य जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ काम करना है।

हालांकि, हत्या के चार दिन बाद, पीएमके के युवा विंग के अध्यक्ष अंबुमणि रामदास ने एक वीडियो जारी किया जिसमें कहा गया कि हत्याएं चुनाव अभियान का नतीजा नहीं थीं। उन्होंने यह भी कहा कि, “आज शिक्षित दलित युवा थिरुमावलवन के साथ नहीं हैं। उन्होंने उनमें विश्वास खो दिया है।

रामदास की टिप्पणी के तुरंत बाद, ट्विटर पर #MyLeaderThiruma ट्रेंड करने लगा। इस बीच, थिरुमावलवन ने इसका जवाब एक ट्वीट से दिया, “किसी को अशिक्षित शब्द से संबोधित करना, व्यक्ति के अहंकार को दर्शाता है। ये (दलित) वे लोग हैं जिन्हे शिक्षित होने के अवसरों से वंचित रखा गया हैं। यह उन्हें नीच नहीं बनाता है।"

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