ग्राउंड रिपोर्ट: माहौल बिगाड़ने की कोशिश करने वालों को शाहबाद डेयरी के लोगों ने दिया जवाब
बजबजाती हुई गलियां, चारों तरफ कूड़े का ढेर, सड़क नाम की कोई शै यहां मौजूद नहीं दिखती, दिल्ली का ये वो कौन इलाका है जहां आज भी घरों के आगे हैंडपंप लगे दिखाई देते हैं। नाली से निकाली गई गंदगी नाली के मुंह पर ही रख दी गई थी और उन्हीं सबके बीच बेपरवाह बच्चे खेल रहे थे। लोग भिनभिनाती मक्खियों के बीच रह रहे थे या मक्खियां लोगों के बीच तय करना मुश्किल था।
गंदगी का ऐसा आलम कि सांस के साथ सिर्फ़ ऑक्सीजन फेफड़ों तक नहीं पहुंच रही बल्कि धूल की मोटी परत, तेज़ सड़ांध भी इंसानी जिंदगियों में दाखिल हो रही होगी।
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ये दिल्ली की शाहबाद डेयरी की झुग्गियां थीं। 28 मई की रात 8 बजकर 45 मिनट का एक सीसीटीवी फुटेज वायरल हुआ। रोंगटे खड़े कर देने वाला ये वीडियो जिसने भी देखा दंग रह गया। साहिल नाम के लड़के ने 16 साल की एक नाबालिग लड़की की बेरहमी से हत्या कर दी। वीडियो के वायरल होते ही हरकत में आई पुलिस ने घटना को अंजाम देकर फरार आरोपी साहिल को गिरफ़्तार कर लिया।
घटना के क़रीब 12 दिन बाद कैसा है शाहबाद डेयरी के उस इलाक़े का माहौल जहां नाबालिग लड़की का परिवार रहता है?
अब कैसा है शाहबाद डेयरी का माहौल ?
समयपुर बादली मेट्रो स्टेशन से उतर कर जैसे ही हम शाहबाद डेयरी के गेट पर पहुंचे, भरी दोपहरी में लू में एक पोस्टर लहरा रहा था जिस पर नाबालिग को न्याय दिलाने के लिए 11 तारीख को 'जन आक्रोश महासभा' के आयोजन की जानकारी लिखी हुई थी। हम जैसे-जैसे इलाक़े में दाखिल हो रहे थे जगह-जगह ये पोस्टर चस्पा दिखाई दिया।
11 तारीख़ को जन आक्रोश महासभा के आयोजन का ऐलान
घटना के 10-12 दिन बीत जाने के बाद भी पूरे इलाक़े में इसी बात की चर्चा दिखी। रास्ता पूछते हुए आगे बढ़ने के दौरान रास्ते में मिले लोगों से बातचीत होती रही। हर कोई बस एक ही बात कह रहा था, ''आरोपी साहिल के साथ वही होना चाहिए जो उसने उस बच्ची के साथ किया, उसका इंसाफ क़ानून से नहीं बल्कि सरे-आम पब्लिक करे।'' सभी लोग साहिल के लिए फांसी की मांग कर रहे थे।
हम जैसे ही उस गली में पहुंचे जहां उस नाबालिग लड़की का घर था, गली में बहुत हलचल मची थी। पानी का टैंकर आया था महिलाएं और बच्चे शोर-शराबे के बीच पानी भर रहे थे, हमने पूछा कि, ''घर के आगे हैंडपंप लगे हैं क्या उनमें पानी नहीं आता''? जवाब मिला उनमें खारा पानी आता है, मीठे पानी के लिए इन टैंकर का ही इंतज़ार रहता है। जहां गली के लोग पानी भर रहे थें, वहीं उस नाबालिग लड़की का परिवार जिस घर में रह रहा है उसका दरवाज़ा बंद था। हमने दरवाज़े पर दस्तक दी तो अंदर से आवाज़ आई '' दरवाज़ा खुला है आप अंदर आ जाइए।''
परिवार को मिली सहायता राशि
बेचैन कर देने वाली गर्मी में बंद दरवाज़े के अंदर एक शोर करता हुआ कूलर चल रहा था। घर में दाखिल होते ही जिस चीज़ पर सबसे पहले नज़र जाती है वे दीवार पर लगी घड़ी, जिसे देखकर तय करना मुश्किल था कि इस परिवार का वक़्त कैसा चल रहा है?
चारपाई पर उस नाबालिग लड़की की मां और भाई बैठे थे जबकि कुर्सी पर बैठे उसके पिता आधार कार्ड, बैंक के कुछ पेपर संभाल रहे थे। पता चला कि केजरीवाल की तरफ से जिस सहायता राशि का ऐलान किया गया था वे एक दिन पहले ही उन्हें मिल गई।
पीड़ित परिवार का घर
उदास घर में बेटी की याद पसरी थी
परिवार अब बात करने की स्थिति में लग रहा था, नाबालिग का भाई अपने दोस्तों के साथ घर में खेल रहा था, मां उदास मोबाइल में बेटी की पुरानी तस्वीरों को हमें दिखा रही थी, पिता कुछ दूरी पर बैठे थे, मां ने कमरे के एक हिस्से की तरफ इशारा करते हुए कहा कि, '' यहीं पैदा हुई थी मेरी बेटी, 2003 में मेरी शादी हुई थी और 2004 में मैं यहां आई थी, यहीं, इसी घर में मेरी बेटी पैदा हुई थी। मोबाइल में एक तस्वीर दिखाकर कहा, उसे पैंट-शर्ट पहनना बहुत पंसद था। वे ज़्यादातर यही पहनती थी, घटना वाले दिन कुछ देर पहले ही उसने मुझे फोन किया था। अच्छी-अच्छी बात कर रही थी। मैं काम पर जाती हूं, बीच-बीच में फोन कर बच्चों का हाल-चाल ले लेती हूं।''
क्या थी भगवा पार्टी की कोशिश?
उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर से दिल्ली में कमाने-खाने आए इस परिवार ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके साथ कुछ ऐसा हो जाएगा। घटना के बाद से ही मिलने वालों का सिलसिला जारी है, आम-ओ-ख़ास सभी तरह से लोग परिवार से मिलने पहुंच रहे हैं। मिलने वालों में हंसराज हंस, दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी, चंद्रशेखर आज़ाद और विधायक भी पहुंचे लेकिन परिवार का आरोप है कि कुछ ऐसे लोग भी उनके घर पहुंच रहे हैं जो मामले को जाति- मज़हब का रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। लड़की के पिता ने बताया कि ''परसों रात (7 जून) को सात-आठ बजे के क़रीब कुछ लोग आए। उन्होंने कहा कि हम ''भगवा पार्टी'' से हैं आपकी मदद करने आए हैं। एक घंटे तक उन्होंने मुझे उलझाए रखा। कह रहे थे कि यहां चलो, वहां चलो। तभी हमारे किसी पड़ोसी ने देखा कि वे जिस गाड़ी में आए थे उसमें तलवार, हॉकी रखी थी। तभी किसी ने 100 नंबर पर कॉल कर दी और पुलिस फौरन आ गई''। मामला शांत हो गया वे आगे कहते हैं कि ''यहां कई तरह के लोग आ रहे हैं। आकर कहते हैं कि मैं आपके साथ हूं। मैं सबकी हां में हां मिला देता हूं। लेकिन न मुझे हिंदू से मतलब है न मुझे मुसलमान से, न ही सिख और ईसाई से मुझे मतलब है। उस दरिंदे ने हमारी बेटी को जिस बेरहमी से मार दिया, मैं बस चाहता हूं कि उसे बड़ी से बड़ी सज़ा हो। मुझे किसी जाति-बिरादरी से मतलब नहीं है।''
''हमें जात-पात से नहीं न्याय से मतलब है''
वहीं लड़की की मां कहती हैं कि ''लोग यहां आकर जात-पात की बात कर रहे हैं। कुछ कह रहे हैं कि वे मुसलमान है तो हम उनको साफ जवाब दे देते हैं कि हमें जात-पात से कुछ नहीं लेना। हमें सिर्फ़ न्याय से मतलब है। उसकी जगह अगर कोई हिंदू हमारी बेटी के साथ ऐसा करता तो भी हम उसके लिए फांसी की ही मांग करते जैसे आज कर रहे हैं।''
''वहां से गुज़र रहे हर शख़्स ने क़ातिल का साथ दिया''
पीड़ित लड़की के पिता ने उनकी बेटी की मदद न करने वालों पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि, ''अगर मदद के लिए कोई हाथ बढ़ाता तो मेरी बेटी ज़रूर बच जाती लेकिन ऐसा लगता है मेरी बेटी को न बचा कर वहां से गुज़रे हर शख़्स ने क़ातिल का साथ दे दिया।''
सामाजिक संगठन माहौल शांत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं
आस-पास के लोगों से बातचीत कर पता चला कि जिस इलाके में ये परिवार रहता है वहां ज़्यादातर दलित और मुस्लिम लोग रहते हैं। और घटना के बाद से मामले को हिंदू-मुसलमान का रंग देने की कोशिश शुरू हो गई थी लेकिन गनीमत रही कि स्थानीय लोगों ने इस कोशिश को नाकाम कर दिया। इस इलाके में कई सालों से काम कर रहे एक संगठन 'भारत की क्रांतिकारी मज़दूर पार्टी' ( RWPI) ने लोगों को समझाने का काम किया। वे घटना के अगले दिन 29 मई से ही घर-घर जाकर लोगों को समझा रहे हैं कि किसी बहकावे में न आएं। वे लगातार इलाके में रैलियां निकाल रहे हैं, पर्चे बांट रहे हैं, पोस्टर चिपका रहे हैं। वे लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस मामले को 'लव जिहाद' का एंगल दे कर लोगों को भड़काने की कोशिश हो सकती है। इस संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि ''अगर यहां कुछ भी होता है तो वे स्थानीय लोग नहीं बल्कि बाहर से लोगों को बुलाकर करवाया जाएगा।'' इलाके में लोगों को समझाने के लिए कल (9 जून) भी इस संगठन की तरफ से एक रैली निकाली गई।
''हिंदू समाज को जगाना होगा''
जिस वक़्त ये संगठन इलाके में रैली निकालने की तैयारी कर रहा था वहीं दूसरी तरफ लड़की के घर के बाहर अचानक ही पुलिस की मौजूदगी बढ़ गई। सायरन बजाते हुए एक पुलिस की गाड़ी पहुंची और उसके बाद एक बड़ी सी गाड़ी नाली और ज़मीन के अंतर को ख़त्म कर देने वाले चौक पर रुकी। बॉडीगार्ड पहले निकले फिर एक शख़्स गाड़ी से जिनके ह्दय पर बिल्ला नज़र आया जिस पर लिखा था ''जय हिंदू राष्ट्र''। ये जय भगवान गोयल थे जिनके बारे में कुछ जानकारी लेने के लिए हमने इनके फेसबुक पेज का रुख किया जहां इनके विचार बहुत ही साफ तौर पर बिखरे थे।
पूरे दल-बल के साथ जय भगवान गोयल अंदर गए, हम बाहर खड़े थे। देखा पीड़ित परिवार के एक अंधेरे कमरे से फ्लैशलाइट वाले कैमरों की रोशनी चमकने लगी और अचानक ही अंदर से तेज़ आवाज़ में एक लफ़्ज़ पूरी गली में गूंजने लगी 'लव जिहाद' ,'लव जिहाद' ,'लव जिहाद', 'हिंदू बेटी' 'जिहादी'। हमने भी उनसे बात की। उनका यहां आने का मकसद जानने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि ''हिंदू समाज को जगाना होगा''। उन्होंने अपनी बात ख़त्म की और 10 से 15 मिनट की मुलाक़ात कर चले गए।
जिस वक़्त जय भगवान गोयल गली से निकल रहे थे वहां से गुज़र रही एक महिला ने तंज किया ''ये अब रोज़ रोज़ की नौटंकी हो गई है, जाने कब ख़त्म होगी।''
हमने आस-पास के लोगों से पूछा क्या उन्हें लगता है कि ''माहौल ख़राब करने की कोशिश की जा रही है।'' कई लोगों ने बताया, ये सच है कि ऐसी कोशिश हो रही है लेकिन ये भी तय है कि हम यहां कुछ नहीं होने देंगे।''
''हमें यहां मिल-जुलकर रहना है''
तभी हमने देखा कि 'भारत की क्रांतिकारी मज़दूर पार्टी' की कॉल पर कुछ लोग जुटे और नारों के साथ एक रैली निकाली गई। शुरू में लोग कम थे लेकिन जैसे-जैसे रैली आगे बढ़ रही थी लोग जुड़ रहे थे जिनमें ज़्यादातर महिलाएं नज़र आ रही थीं। हमने रैली में शामिल हुईं फूला से बातचीत की जो कहती हैं कि, ''हम इस रैली के माध्यम से लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि हमें यहां मिल-जुलकर रहना है, हिंदू-मुसलमान हम सब यहां मिलकर रहते आए हैं''। वहीं रैली में हिस्सा लेने वाली कुछ लड़कियों ने कहा कि ''हमारे यहां का माहौल ठीक नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह की रैली का असर ज़रूर होगा और माहौल ठीक हो जाएगा।''
कई गलियों का चक्कर लगाते हुए रैली निकली इस दौरान हमने उन लोगों से भी बात की जो घर से बाहर निकल कर रैली को देख रहे थे। हमने उनसे पूछा कि माहौल ठीक है, तो लोगों का कहना था कि माहौल ठीक है लेकिन कब क्या हो जाए कुछ पता नहीं चलता। हां हम चाहते हैं कि जिसने भी ऐसा किया है उसे तुरंत फांसी होनी चाहिए।''
इलाके में ज़्यादातर यूपी, बिहार से कमाने आए लोग रहते हैं। इस जगह पर बुनियादी सुविधाएं भी नहीं है। लोगों का कहना है कि नशा और क्राइम इस जगह बहुत बुरी तरह से फैला है। लेकिन इस घटना ने स्थानीय लोगों में दहशत भर दी है। पर वे दावा करते हैं कि कुछ दिन बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा।
''माहौल ख़राब नहीं होने देंगे''
हमने 'भारत की क्रांतिकारी मज़दूर पार्टी' से जुड़ी अदिती से बात की। अदिती इसी इलाके में रहती हैं और कई सालों से इस इलाके में सामाजिक मुद्दों पर काम कर रही हैं। वे कहती हैं कि, ''28 तारीख को हमारी शाहबाद डेयरी में एक बच्ची को बेरहमी से मार दिया गया तो आज हमने स्त्री सुरक्षा के मुद्दे पर एक रैली निकाली है। इससे पहले 29 मई को हमने बजरंग दल, संघ से जुड़े लोगों को खदेड़ कर भगाया था। आज हमने ये रैली चेतावनी के तौर पर निकाली थी बीजेपी और संघ के लोगों के लिए कि हम शाहबाद डेयरी का माहौल ख़राब नहीं होने देंगे।'' अदिती मेन स्ट्रीम मीडिया के उन चैनल पर निशाना साधते हुए कहती हैं, ''जिन्होंने ये सब चलाया था कि शाहबाद डेयरी में 'लव जिहाद' का मामला सामने आया। हम उन्हें बताना चाहते हैं कि यहां ऐसा कोई मामला नहीं है। ये मामला स्त्री सुरक्षा का है। यहां स्त्री सुरक्षा के लिए इंतजाम किए जाने चाहिए। रही बात शाहबाद डेयरी के लोगों की तो यहां के लोग हमेशा से ही मिलजुल कर रहते आए हैं।''
RWPI की तरफ से निकाली गई रैली
अदिती के मुताबिक वे घटना के एक दिन के बाद से ही इलाके का माहौल न बिगड़े इसकी कोशिश में लग गई थीं। वे अपने साथियों के साथ लगातार इलाके में आ रहे उन लोगों को भगाने की कोशिश कर रही हैं जिन पर माहौल ख़राब करने का अंदेशा हो रहा है।
अदिती जिस संगठन से जुड़ी हैं वे बहुत ही छोटा सा संगठन है। लेकिन वे और उनके साथियों की कोशिश का ही नतीजा था कि उनके बुलाने पर लोग घरों से बाहर निकल रहे थे। महिलाएं उनकी बात सुन रही थीं। ये संगठन लोगों की नाली और पानी की समस्या पर लगातार काम कर रहा है और अब इस घटना के एक दिन बाद 29 मई से ही लोगों को समझा रहा है और लोगों को माहौल ख़राब करने वालों को खदेड़ने की शपथ दिला रहा है।
शाहबाद डेयरी के स्थानीय लोगों को देखकर समझ आ रहा था कि ये लोग भी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि, 'समाज की रक्षा' करने का दावा करने वालों को क्या उनकी बुनियादी ज़रूरतों से महरूमी दिखाई नहीं देती। क्या उन तक गंदी नाली और साफ पानी की मांग से पहले 'लव जिहाद' का 'एजेंडा' ही पहुंच जाता है?
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