लेनिन ने कहा था साम्राज्यवाद युद्ध के बगैर जीवित नहीं रह सकता
केदार दास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान द्वारा रुसी सर्वहारा क्रांति के महान नेता लेनिन की 153 वीं जयंती केदार भवन में मनाई गई। इस जयंती समारोह में शहर के बुद्धिजीवी, कार्यकर्ता, साहित्यकार, रंगकर्मी, कलाकार आदि सभी शामिल हुए। आगत अतिथियों का स्वागत संस्थान के सचिव अजय कुमार ने किया।
बंगला कवि, ट्रेड यूनियन नेता और 'बिहार हेराल्ड' के संपादक बिद्युतपाल ने अपने संबोधन में कहा, "लेनिन से सीखने का मतलब है कि जिस जमीन पर आप काम कर रहे हैं उसकी सबसे पहले आलोचना होनी चाहिए। लेनिन का सबक यही है कि अपने समय को ठीक से समझकर वर्गसंघर्ष को आगे बढाना है। लेनिन रूस में अचानक से नहीं आये। उसके पीछे लम्बा इतिहास है। लेनिन के शुरुआती लेख पढ़ के देखें वे अपने आसपास के मेहनतकश वर्ग के किसानों की समस्याओं पर लिखा करते थे। उन्होंने जारशाही के तथ्यों व आंकड़ों के आधार पर ' रूस में पूंजीवाद का विकास ' किताब लिखी। 70-80 के जमाने में कहा जाता था कि काम तो किसानों-मज़दूरों के मध्य हो रहा है सफेदपोशों मध्यवर्ग के बीच काम करने से क्या होगा। हम जहां हैं वहीं से शुरुआत होनी चाहिए। सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना दोनों होनी चाहिए। साम्राज़वाद के बारे में बहस बहुत होती रही है। पहले बात होती थी कि साम्राज़वाद, राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग, कमप्राडोर बुर्जआजी की बात होती थी। दुनिया पर नियंत्रण करने के लिए साम्राज़वादी देश कोशिश कर रहे हैं। लेनिन कहा करते थे कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद का मोनोपोली स्टेज है। पूंजीवादी में कारटेल कैसे बनता है, इजारेदारी कैसे बनता है इसके बारे में लेनिन ने बताया था कि किसी भी माल का मूल्य और दाम के बीच संबंध होता है। मूल्य बना है श्रम से। सामाजिक तौर पर आवश्यक श्रम इसका मूल्य तय करता है। वहीँ मूल्य कीमत को खींचता है। मार्क्स ने अपनी महत्वपूर्ण कृति 'पूंजी' में इस बारे में बताया है। जैसे फ्रांस की सीमेंट कम्पनी लाफार्ज के आने के बाद के.सी. सी. सीमेंट का दाम 26 रुपया घट गया। लेकिन ज़ब दाम घट गया और वह कंपनी खत्म हो गई यों उसने अपना दाम फिर से बढ़ा दिया। मोनोपोली प्राइस मैकेनिज्म के माध्यम से अपनी मोनोपोली को स्थापित करता है। आज के साम्राज्यवाद को किसी एक देश के साथ नहीं जोड़ सकते हैं। साम्राज्यवादी पूंजी ने पूरी तरह आपको अपने घेरे में लिया हुआ है। यह पूंजी अपना आधिपत्य जमाये हुए है। हर पूंजी मोनोपोलीस्टिक बनना चाहता है और अपने हित को देश के हित के रूप में बताता है। अडानी यही तो आज कल कर रहा है।"
माकपा के वरिष्ठ नेता अरुण मिश्रा ने अपने विषय पर हस्तक्षेप में कहा " लेनिन के समय पूंजीवाद का स्वरूप साम्राज्यवाद में बदल गया है। साम्राज्यवाद का विश्लेषण लेनिन ने कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो के आलोक में किया था। मार्क्स ने कहा है कि सस्ते प्राइस के हथियार से दीवार को ढा दिया जाता है। एक ओर पूंजी का केंद्रीकरण होता है तो दूसरी ओर गरीबी बढ़ती है। एजाज़ अहमद ने अपने लेखों में इसके बारे में बताया है। अब अमेरिका के बड़े बड़े इंडस्ट्रियल सेक्टर बंद हो रहे हैं पर फाइनेंस के माध्यम से नियंत्रण कर रहा है। साम्राज्यवाद में युद्ध अवश्यम्भावी होता है युद्ध के बगैर वह रह ही नहीं सकता। तकनीक का निरंतर परिवर्तन पूंजीवाद के लिए जरूरी है इसके बगैर वह आगे नहीं बढ़ सकता। आज जो संकट हम पूंजीवाद देशों में देख रहे हैं कि वे खाना नहीं खा पा रहे हैं, मकान का भाड़ा नहीं दे पा रहे हैं। इस कारण देखिये कि इंगलैंड व फ्रांस में बड़े बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। आज का साम्राज्यवाद संकट में है लेकिन सिर्फ इससे क्रांति नहीं होती। क्रांति के लिए उन संकटों का इस्तेमाल करते हुए उसका क्रांति के लिए उपयोग किया जाता है। तब लेनिन अकेले पड़ गए थे। लेनिन कैसे भविष्यवक्ता बन जाते हैं। वह इस कारण सम्भव होता है कि लेनिन क्रांतिकारी उभार को देख पा रहे थे जो दूसरे लोग नहीं देख पा रहे थे। लेनिन ठोस परिस्थिति का ठोस विश्वलेषण कर नतीजे ओर पहुंचते थे। लेनिन को तो तो याद करते हैं लेकिन उसके रास्ते पर चलने में पैर लड़खड़ाने लगते हैं। उन्होंने ने क्रांति की तारीख तक निर्धारित कर देते हैं। हममे से कितने लोग हैं जो अपने गांव के अंतर्विरोधों को समझ पाते हैं। लेनिन की यही सीख है।"
अशोक कुमार सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा, "लेनिन ने मार्क्स की कल्पना को और हममें से अधिकांश की इच्छा को मूर्त रूप दिया। लेनिन ने जो साम्राज्यवाद पर पुस्तिका लिखी थी वह बेहद महत्वपूर्ण है। पूंजीवाद अपने जन्म काल से ही साम्राज्यवादी रहा है। ब्रिटिश साम्राज्य पहले भी था साम्राज्यवाद की उच्चतम अवस्था में पहुंचने से पहले। हमें ग्राम्शी को भी याद करना चाहिए जो बताते हैं कि कम्युनिकेशन और मीडिया मज़दूर वर्ग को बुर्जुआ सत्ता की सेवा में लगा देता है। ट्रेड यूनियन के नेता शिकायत करते हैं कि संघर्ष के समय लाल झंडा और बाकी समय दूसरा झंडा। अब जो बदलाव हो रहे हैं उसे रेखांकित करने की जरूरत है। साम्राज्यवाद का केंद्र अभी भी अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जापान है। अब सेंटर और हाशिये ( पेरेफेरी ) का संबंध बन गया है। अब ज़ब पेरेफेरी देशों में जाता है तो वहां नव उदारवादी मॉडल को लागू करता है। भारत में आर.एस.एस. साम्राज्यवाद का प्यादा है। मल्टीपोलर वर्ल्ड बन जाने से सेंटर- पेरीफेरी का संबंध बदल नहीं जाएगा। आप साम्राज्यवाद को तब तक परास्त नहीं कर सकते ज़ब तक कि नव उदारवादी मॉडल का विरोध नहीं करते।"
प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने कहा " लेनिन की 1916 में लिखी विश्व प्रसिद्ध कृति " साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था " में जिस सैद्धांतिक समझदारी को सामने लाया कि जो देश पूंजीवाद में देर से आता है उसके पास साम्राज्य कायम करने के लिए जगह ही नहीं थी क्योंकि उस वक़्त तक सारी दुनिया का बंटवारा पहले के साम्राज्यवाद ताकतों द्वारा संपन्न हो चुका था। लेनिन ने बताया कि ऐसी अवस्था में युद्ध साम्राज्यवाद का तार्किक परिणति बन जाता है। लेनिन का कहना था कि वित्तीय पूंजी के पीछे राष्ट्र राज्य की ताकत है। अतः वित्तीय पूंजी की टकराहट देशों की लड़ाई में तब्दील हो जाती है। लेकिन लेनिन के जमाने के मुकाबले फाइनेंस कैपिटल का केन्द्रीकरण सौ गुणा ज्यादा हो चुका है। अब उसकी पहुंच पूरी दुनिया में हो चुकी है। अब साम्राज्यवादी देशों को सीधे सीधे प्रत्यक्ष शासन की आवश्यकता नहीं है बल्कि व्यापार, असमान-विनिमय और कर्ज के माध्यम से वहीँ परिणाम प्राप्त कर लेता है। तीसरी दुनिया के देशों को कर्ज के जाल में फंसा कर साम्राज्यवाद मुल्क अपना काम करते हैं। अपनी इन नीतियों को लागू करने के लिए सैन्य ताकत पर भरोसा करता है। अमेरिका के आज दुनिया भर में आठ सौ सैनिक अड्डे हैं ताकि यदि किसी देश में लगी पूंजी पर खतरा बढ़े तो सैनिक हस्तक्षेप किया जा सके।"
इंजीनियर सुनील सिंह ने कहा " आज सीधे-सीधे उपनिवेश नहीं है लेकिन मुक्त व्यापार है। लेनिन की किताब बेहद दुरूह किताब है। कर किताब की सबसे बड़ी विशेषता क्या है कि वह युद्ध बाजार के लिए हुआ था। 1915 में जिम्मेर्वल्ड कांन्फ्रेंस में लेनिन को 12 वोट मिलते हैं जबकि उनके खिलाफ 19 वोट। मतलब अधिक लोग थे जो अपने देश के शासकों के साथ ही जाने की बात करते थे। अब आज के जमाने में फ्री ट्रेड उन्ही पुरानी साम्राज्यवादी नीतियों को लागू करना है। ज़ब समाज़वादी देशों ने अपने सभी सैन्य गठबंधन समाप्त कर दिए तो फिर अमेरिका ने क्यों नहीं किए। शीत युद्ध के बाद भी इराक पर हमला किया गया। नए साम्राज्यवाद के पास मानवता नाम की कोई चीज नहीं है।"
एटक के महासचिव गज़नफर नवाब ने कहा '' ज़ब तक अर्थशास्त्र को नहीं समझा जाएगा तब तक राजनीतिक अभिव्यक्ति को ठीक से नहीं समझा जाएगा।"
अध्यक्षीय वक़्तव्य देते हुए सीपीआई के नेता विजय नारायण मिश्रा ने कहा " लेनिन ने कहा साम्राज़्यवाद युद्ध के बगैर नहीं जीवित रह सकता। मुक्त प्रतियोगिता से इजारेदारी के पनपने की शुरुआत होती है। साम्राज़्यवाद कमजोर पड़ रहा है इसके कुछ संकेत मिलने लगे है।"
कार्यक्रम को व उप महासचिव डी.पी. यादव व पत्रकार पुष्पराज ने भी संबोधित किया। समारोह का संचालन अमरनाथ ने किया।
केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान ने लेनिन की 153 वीं जयंती का आयोजन किया।
सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में थे चन्द्रबिंद सिंह, डॉ अंकित, अभिषेक, बिट्टू भारद्वाज, जीतेन्द्र कुमार, हरदेव ठाकुर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता रामलला सिंह, प्रीति सिंह, उमाकान्त, राकेश कुमुद, धनंजय, कौशलेन्द्र वर्मा, चन्द्रनाथ झा, बी.एन. विश्वकर्मा, पुष्पेंद्र शुक्ला, मंगल पासवान, कुलभूषण गोपाल आदि।
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